मैं परिंदा हूँ ..... ... मिरा ईमान न पूछो
क्या हूँ, हिन्दू या कि मुस्सलमान न पूछो।
चर्च, मंदर, मस्जिदें ....सब एक बराबर
रहता किसमे है मिरा भगवान न पूछो.
मजहबी उन्माद में जो मर गया वो था
एक जिंदा आदमी , पहचान न पूछो ।
पीठ में घोपा हुआ है नफरती खंजर
रोता क्यों है अपना हिंदुस्तान न पूछो ।
आलमे बेचैनियाँ हर सिम्त है फैली
हर गली हरसू क्यों है वीरान न पूछो ।
खूब काटी है फसल अहले सियासत ने
खाद बन, किसने गँवाईं जान न पूछो ।
भाई मारा जाता है जब, भाई के हाथों
होती कितनी ये जमीं हैरान न पूछो ।
...... नीरज कुमार नीर .............
क्या हूँ, हिन्दू या कि मुस्सलमान न पूछो।
चर्च, मंदर, मस्जिदें ....सब एक बराबर
रहता किसमे है मिरा भगवान न पूछो.
मजहबी उन्माद में जो मर गया वो था
एक जिंदा आदमी , पहचान न पूछो ।
पीठ में घोपा हुआ है नफरती खंजर
रोता क्यों है अपना हिंदुस्तान न पूछो ।
आलमे बेचैनियाँ हर सिम्त है फैली
हर गली हरसू क्यों है वीरान न पूछो ।
खूब काटी है फसल अहले सियासत ने
खाद बन, किसने गँवाईं जान न पूछो ।
भाई मारा जाता है जब, भाई के हाथों
होती कितनी ये जमीं हैरान न पूछो ।
...... नीरज कुमार नीर .............
#neeraj_kumar_neer
#gazal #hindu #hindustan #bhagwan
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 29 दिसम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteमन के किसी कोने में झाकने को मजबूर करते सुन्दर अलफ़ाज़ लिखे हैं कविवर नीर साब आपने !!
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है.
ReplyDeleteबहुत ही बढियां लाजवाब ग़ज़ल
ReplyDeleteसुन्दर और भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत गहरे शेर .... आइना दिखाते हुए ...
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