यह कविता सरिता के जून २०१२ द्वितीयार्द्ध में प्रकाशित हुई थी
साँवली सुन्दर सलोनी सी लड़की
नीम दरख़्त के पीछे की खिड़की
आम की शाखें और बरगद की डाली
नीम के पत्ते और मिटटी की प्याली
बहुत याद आता है गुजरा ज़माना
उसकी गली के चक्कर लगाना
सीने से पुस्तक लगाके वो चलना
गली के मोड़ पे जा के पलटना
देख के मुझको तेरा मुस्काना
दातों से अपने होठों को दबाना
दुपट्टे के छोर में अंगुली फिराना
चुपके से मेरे ख्यालों में आना
बहुत याद आता है गुजरा ज़माना
उसकी गली के चक्कर लगाना
भरी दुपहरी में छत पे वो आना
भिंगोकर बालों को फिर से सुखाना
बाल बनाने को खिड़की पे आना
करूँ जो इशारे तो मुंह का बनाना
बहुत याद आता है गुजरा ज़माना
उसकी गली के चक्कर लगाना
चाँदनी रात में बागों में जाना
छुप छुप के तेरा मिलने को आना
पूनम की रात में तारों का गिनना
बंद करके ऑंखें तेरी बातें सुनना
बहुत याद आता है गुजरा ज़माना
उसकी गली के चक्कर लगाना
... नीरज कुमार 'नीर'
अच्छी रचना है सर
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत शब्द नीरज जी !
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