वनों कि अमराईयों में,
सागर कि गहराइयों में,
पर्वत के उत्तुंग शिखर पर,
व्योम के विस्तीर्ण पटल पर,
प्रभु! तुम हो, तुम हो, तुम ही तुम हो .
निर्झर के नीर में,
हर्ष में, पीर में,
जलधी के जल में,
हर एक पल में,
प्रभु! तुम हो , तुम हो, तुम ही तुम हो.
मीरा के गीत में ,
राधा के प्रीत में ,
जीवन की फाँस में ,
हर एक साँस में,
प्रभु! तुम हो , तुम हो, तुम ही तुम हो.
जीवन निष्पत्ति में,
दुर्गम विपत्ति में,
सफलता कि आस में,
मेरे हर प्रयास में,
प्रभु! तुम हो, तुम हो, तुम ही तुम हो.
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