वर्षा ऐसो बरसो
जल आप्लावित हो जाये
पी के मिलन से ज्यूँ
मन आह्लादित हो जाये.
तरुवर प्यासे सुख रहे
प्यासी भयी वसुंधरा,
तन मन कि प्यास बुझाओ
आओ प्यारे बदरा.
पनघट सूना गलियां सूनी
जीवन लगता सूना सूना,
अब तो आओ प्रियतम
प्रमुदित हो जीवन का हर कोना .
धरा वैधव्य ओढ़ चुकी
नैन थके पन्थ निहार,
मेरी तुमसे है वंदना
बरसाओ प्रेम आभार .
व्योम के विस्तार में
छाओ श्याम सारंग,
नयनन को अभिराम लगे
ह्रदय भरे नवरंग
..........
नीरज कुमार नीर
चित्र गूगल से साभार
वाह नीरज जी,इन शब्दों के बाण शायद बादलों को लग गए... :)
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ReplyDeleteआपको पसंद आयी,आपका आभार.
ReplyDeleteमेघों को आमंत्रित करती बहुत ही मधुर मनुहार भरी रचना ! बहुत सुंदर !
ReplyDeleteसुंदर रचना.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनायें आदरणीय-
कोमल भाव की सुन्दर रचना कोमल शब्दावली। शुक्रिया नीरज भाई आपकी टिप्पणी का।
ReplyDeletebahut sunder rachna ..
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