Wednesday, 4 July 2012

आओ प्यारे बदरा


वर्षा ऐसो बरसो
जल आप्लावित हो जाये
पी के मिलन से ज्यूँ
मन आह्लादित हो जाये.

तरुवर प्यासे  सुख रहे
प्यासी भयी वसुंधरा,
तन मन कि प्यास बुझाओ
आओ प्यारे बदरा.

पनघट सूना गलियां सूनी 
जीवन लगता सूना सूना,
अब तो आओ प्रियतम
प्रमुदित हो जीवन का हर कोना .

धरा वैधव्य ओढ़ चुकी
नैन थके पन्थ निहार,
मेरी तुमसे है वंदना
बरसाओ प्रेम आभार .

व्योम के विस्तार में
छाओ श्याम सारंग,
नयनन को अभिराम लगे
ह्रदय भरे नवरंग 
..........
नीरज कुमार नीर 
चित्र गूगल से साभार


8 comments:

  1. वाह नीरज जी,इन शब्दों के बाण शायद बादलों को लग गए... :)

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. आपको पसंद आयी,आपका आभार.

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  4. मेघों को आमंत्रित करती बहुत ही मधुर मनुहार भरी रचना ! बहुत सुंदर !

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  5. सुन्दर प्रस्तुति-
    बहुत बहुत शुभकामनायें आदरणीय-

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  6. कोमल भाव की सुन्दर रचना कोमल शब्दावली। शुक्रिया नीरज भाई आपकी टिप्पणी का।

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

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