दुमहले के ऊँचे वातायन से
हलके पदचापों सहित
चुपके से होती प्रविष्ट
मखमली अंगों में समेट
कर देती निहाल .
स्वयं में समाकर एकाकार कर
लेती,
घुल जाता मेरा अस्तित्व
पानी में रंग की तरह.
अम्बर के अलगनी पर
टांग दिए हैं वक्त ने काले
मेघ,
चन्द्रमा आवृत है ,
ज्योत्सना बाधित,
अस्निग्ध हाड़ जल रहा
सीली लकड़ियों की तरह.
स्मृति मञ्जूषा में तह कर
रखी हुई हैं
सुखद स्मृतियाँ.....
........ नीरज कुमार ‘नीर’
स्मृतियाँ तो रह जाती हैं, याद सुखद सी लाने को,
ReplyDeleteमन को मिले हिलोर और बस बीता समय मनाने को।
खूबसूरत अभिव्यक्ति, बेजोड़ रचना।
ReplyDeleteक्या बात है-
ReplyDeleteसादर
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (25-08-2013) के चर्चा मंच -1348 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteनेटवर्क की सुविधा से लम्बे समय से वंचित रहने की कारण आज विलम्ब से उपस्थित हूँ !
ReplyDeleteभाद्र पट के आगमन की वधाई !!
वाह!वाह!!सुन्दर चीते प्रस्तुतीकरण !!
बड़ी सुन्दरता से रचा है आपने भावों को. अति सुन्दर कृति.
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना...
ReplyDelete:-)
Very nice,attractive writing.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteकोमल भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDelete-बहुत अच्छी रचना ,बधाई
ReplyDeletelatest post आभार !
latest post देश किधर जा रहा है ?
वाह !!! बहुत सुंदर रचना,,,
ReplyDeleteRECENT POST : पाँच( दोहे )
बेहद सुंदर रचना ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDeleteदुमहले के ऊंचे वातायन से
हलके पदचापों सहित
चुपके से होती प्रविष्ट...
सुखद स्मृतियां.....
अरे वाऽहऽऽ…!
बहुत सुंदर कविता है...
नीरज कुमार ‘नीर’ जी
श्रेष्ठ सृजन हेतु साधुवाद शुभकामनाएं !
❣हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...❣
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बेहद खूबसूरत ....
ReplyDeleteरोमांचित करती हुयी रचना ...!!
सुलगती हैं गीली स्मृतियाँ ... तन मन में बस जाती हैं ...
ReplyDeleteये काले मेघ ओर नन्ही बूँदें पल पल आग लगाती हैं ...