मुझे जीने दे साथी मेरे
वहम के साथ,
जीवन की सच्चाइयां काटती
है मुझे,
मैं भागता नहीं
सच्चाइयों से,
जूझता हूँ दिन-रात,
सुबह-शाम,
कड़वे, पीड़ादायक,
सच्चाइयों से.
कुछ पल मुझे चैन के जीने दे
मुझे जीने दे साथी मेरे
वहम के साथ.
..
मेरे सुरीले, सुखद सपनो
में,
घुलती है, कड़वाहट
सच्चाइयों की,
भरती है मिठास थोड़ी,....
झूठी सी .
कुछ पल सुकून के जीने दे.
मुझे जीने दे साथी मेरे
वहम के साथ.
..
मैं सीमाबद्ध हूँ अपने
ही द्वारा,
स्वयं के स्थापित
वर्जनाओं के अंदर,
घुटन,सीलन भरी दीवारों
के भीतर
सिसकती है जिंदगी आहें
भरकर.
कुछ पल मुखर होकर जीने
दे.
मूझे जीने दे साथी मेरे
वहम के साथ.
...
मैं अवगत हूँ वहम की
क्षणिकता से,
मैं भिज्ञ हूँ इसके
झूठेपन से,
ज्ञान है मुझे जीवन का:
एक क्षणिक झूठ,
कुछ पल मुझे आनंद के
जीने दे,
मुझे जीने दे साथी मेरे
वहम के साथ.
मुझे जीने दे.
..............'नीरज कुमार'
वाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
मेरे सुरीले, सुखद सपनो में,
घुलती है, कड़वाहट सच्चाइयों की,
भरती है मिठास थोड़ी,.... झूठी सी .
कुछ पल सुकून के जीने दे.
मुझे जीने दे साथी मेरे वहम के साथ....
लाजवाब रचना.
अनु
बहुत शुक्रिया अनु जी.
ReplyDeletekabhi kabhi humein apni hee duniy aacchi lagti hai......
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