Saturday, 27 October 2012

वादा करके श्याम न आये


तडपत विरहन  नैन हमारे,
वादा करके श्याम न   आये.

कोई खत  न आई खबरिया,
विरहा  अग्नि जली  वाबरिया।

छलिये को  कभी सुध न आई,
कपोल निज  कजरा पसराई .

आ तो जाते  एक पहर में ,
डाल दीन्ही  विरह भंवर में.

मैं थी कुमति मत गयी मारी
निष्ठुर  से जो प्रीति लगाई.

श्याम छवि सुंदर चित्त  भाए ,
कौन भूल की  दियो  सजाये .

उमक हुमक के  चमकत जाती,
अर्द्ध निश श्याम सुधि  जो पाती.

वर्षा बीती , शिशिर समाये
सब जन आये, श्याम न आये.

तडपत विरहन  नैन हमारे,
वादा करके श्याम न आये.
……………………..नीरज कुमार नीर  ..







9 comments:

  1. विरह में लिखी पंक्तियों में अपना रस होता है...

    बहुत सुन्दर...
    अनु

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  2. बहुत शुक्रिया अनु जी आपका बहुत बहुत आभार. कृपया उत्साह बढ़ाते रहिएगा.

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  3. vaada karke shyaam na aaye hai hi aise nishthur kya karein..sundar abhivyakti

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  4. हिन्दी कविता का अपना ही एक मज़ा है

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  5. बहुत सुन्दर और भावुक अभिव्यक्ति ---
    जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाऐं ----

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  6. वर्षा बीती , शिशिर समाये
    सब जन आये, श्याम न आये.

    तडपत विरहन नैन हमारे,
    वादा करके श्याम न आये.
    सुन्दर अभिव्यक्ति, नीरज कुमार 'नीर जी

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  7. अद्भुत विरह प्रेम का सु दर निरूपण।

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  8. किसी भी रस में लिखी कविता हो श्याम सब के है. सुंदर रचना.

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  9. "धरती धिक्कारती"
    धरती माता हैं धिक्कारती? वह पुनि-पुनि उठ पुकारती। सभी नेक इंशानों धरा हों। धरती पुकारती है धिक्कारती है॥

    बढ़ने लगा विलास वेग सा। आगे आओ !बचा लो मुझको। तुन्हें रहि-रहि कर ललकारती। धरती पुकारती है धिक्कारती है॥

    जल नमक से रहती आच्छादित? हानि नहीं देती उपवन देती हूँ। नीचे जल ऊपर हिमतर रहती हूँ। धरती पुकारती है धिक्कारती है॥

    विकरण को रोक तुझे जीवन देती। उत्तर-दક્ષિण विकशित अमरीका। पूरब उत्तर भारत देव सदृश महान। धरती पुकारती है धिक्कारती है॥

    ग्रीकलैंड अटलांटिक पश्चिम में। मौन नाश विध्वंस घना अंधेरा। जल निधि में बन जलती रहती। धरती पुकारती है धिक्कारती है॥

    शोभा, कीर्ति दीप्ति आनंद अमरता। विकल वासना में पलती रहती हूँ। क्रुद्ध सिंधु कपटी काल में रहकर। धरती पुकारती और धिक्कारती॥

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