जिसकी तलाश में बहुत
दूर तक गए,
उसका मकां वहीँ था,
जहाँ से मुड गए.
सीधी थी राहे मंजिल सबके
लिए मगर,
हम जब चले तो कई मोड़
मुड गए.
जिनकी उम्मीद में
बैठे रहे उम्र भर,
आकर करीब गैरों की
जानिब मुड गए.
सोच कर निकले थे इबादत
को मगर,
कुछ दुर चलके, मयकदे
को मुड गए.
.............. नीरज
कुमार ‘नीर’
सोच कर निकले थे इबादत को मगर,
ReplyDeleteकुछ दुर चलके, मयकदे को मुड गए. .. क्या बात है।