नित्य मरणशील
पर अमरता का अभिमान लिए
दूर देश का राही
बढ़ता जाता हूँ,
करके लक्ष्य को अभिप्राय.
मैं मस्तक पर घाव लिए,
नहीं हूँ, लक्ष्यहीन अश्वत्थामा.
मेरा ध्येय निश्चित है ,
मैं सारथी हूँ काल का,
मुक्ति का सन्देश लिए
अरण्यों में भटक रहा
मुर्दा शरीरों के बीच
चल रहा अथक .
मेरे पैर डगमगाते हैं,
ठोकरें बहुत है .
लेकिन अडिग हूँ , निभ्रान्त,
निश्चित पथ का पथगामी ,
मुझे लक्षित है, मुक्ति
विषमता से, पराधीनता से ,
रूढियों से , अज्ञान से ,
अपने बंधु बांधवों के लिए .
मैं नहीं चाहता विनाश,
समूल कौरवों का परन्तु
मुझे परितोष नहीं है,
पांच गांव भर से भी ,
मुझे इच्छित है, सम्पूर्ण भारत ही नहीं
अखिल विश्व .
……………… नीरज कुमार ‘नीर’
#neeraj_kumar_neer
सुन्दर-
ReplyDeleteआभार आपका ||
बहुत आभार रविकर जी.
DeleteBahoot hee utkrisht rachna, Neeraj-jee!!Dhrir Nishchay aur bishwas se bharpur
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया अनिमेष जी.
Deleteसुन्दर काव्य-कृति..
ReplyDeleteबहुत आभार अमृता जी.
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ReplyDeleteनित्य मरणशील
पर अमरता का अभिमान लिए
दूर देश का राही
बढ़ता जाता हूँ,सुंदर अभिव्यक्ति! सादर नीरज जी!
धरती की गोद
बहुत सुंदर
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