फागुन आ गया और फागुन की मस्ती के क्या कहने , ऐसे ही फागुन की मस्ती में एक पत्नी और एक पति के बीच के नोकझोक की दास्ताँ है मेरी प्रस्तुत कविता. पढ़िए और आनंद लीजिए:
बलमुआ झूठ ना बोलो
कि आया फाल्गुन मास
सुहाना.
किससे तुमने नैन
लड़ाई,
किससे दिल लगाया है.
कौन है बैरी सौतन
मेरी
कहाँ से उसको लाया
है.
बलमुआ झूठ ना बोलो
कि आया फाल्गुन मास
सुहाना.
उड़ा उड़ा सा चेहरा
तेरा
माथे पे पसीना
तू बड़ा हरजाई बालम
ना कहोगे तो
कहूँगी ना.
बलमुआ झूठ ना बोलो
कि आया फाल्गुन मास
सुहाना.
सास देवे गारी
ननद मारे ताना.
जेठ आँख दिखावे मोहे
देवरा बड़ा सयाना.
बलमुआ झूठ ना बोलो
कि आया फाल्गुन मास
सुहाना..
.......... नीरज
कुमार ‘नीर’
होली से पहले होली की याद दिला दी .....अब की होली तै बलमवा की खैर नाही
ReplyDeletePlease visit my blog....
सूरज का गोला .. .
बहुत बहुत शुक्रिया..
Deletekya baat hai neeraj bahut majedar rachna saas deve gaari nanad maare taana ..jeth mohe aankh dikhawe ..devar bada sayana..maja aa gaya padh ke :-)
ReplyDeleteमेरा लिखा एवं गाया हुआ पहला भजन ..आपकी प्रतिक्रिया चाहती हूँ ब्लॉग पर आपका स्वागत है
Os ki boond: गिरधर से पयोधर...
बहुत शुक्रिया.
Deleteबढ़िया है आदरणीय -
ReplyDeleteबधाइयां-
बहुत आभार.
Deleteहोली पर मजेदार रचना,,,बधाई नीरज जी,,,
ReplyDeleteRecent post: रंग,
शुक्रिया.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ब्लॉग मिल गया, ढूँढने निकले थे। अब तो आते जाते रहेंगे।
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