Thursday, 30 May 2013

मधुमय प्रीत



मधुमय प्रीत तुम्हारी प्रिय, तुम रसवंती हाला, 
मैं भंवरा गुन गुन गुंजन, मधु रस पीने वाला.

पूर्णिमा की तुम पूर्ण विधु सी  
तुम सुन्दर लगती नव वधु सी.
मैं हूँ जन्म जन्म का प्यासा
और  यौवन तेरा मधुशाला

मधुमय प्रीत तुम्हारी प्रिय,
तुम रसवंती हाला  ........,

जेठ की तपती दुपहरी में
तुम हो वृक्ष इक घना साया .
मैं इक राही दूर देश का
तनिक देर सुस्ताने वाला.

मधुमय प्रीत तुम्हारी प्रिय,
तुम रसवंती हाला...........,

पीत कंचन बदन तुम्हारा,         
और हँसी खनक संगीत सी,
जलद समान अलक तुम्हारे,  ....  
हैं जलधी नयन विशाला.       .....    
मधुमय प्रीत तुम्हारी प्रिय,
तुम रसवंती हाला,

......... नीरज कुमार ‘नीर’
#neeraj_kumar_neer 
शब्दार्थ : 
 …. (हाला : शराब)
 विधु: चन्द्रमा
 पीत कंचन : पीले सोने सा
 जलद : बादल,
 अलक : केश 
 जलधी : सागर
चित्र गूगल से साभार 

14 comments:

  1. आहा ये काव्य हाला पी कर मन आनंदित हो गया.

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  2. गज़ब की काव्य हाल ...
    मज़ा आ गया सभी छंद पढ़ के ... रस छलक रहा है ...

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  3. बहुत उम्दा,लाजबाब सुंदर गीत ,

    Recent post: ओ प्यारी लली,

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  4. प्रेम मय हो कर प्रिय का वर्णन ...अति सुंदर

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  5. bahut sunder ............geet

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  6. प्रेम भाव से पूर्ण सुन्दर, लाजवाब
    साभार!

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  7. बहुत सुंदर !!
    दीपावली कि हार्दिक शुभकामना

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  8. मित्र !शुभ दीपावली !!आशा है कि आप सपरिवार सकुशल होंगे |
    सुन्दर रचना !!माधुर्य पूर्ण !!

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  9. प्रेम के रस से सराबोर बेहद खूबसूरत गीत

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

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