जन गण मन के अधिनायक.
कहाँ रहते हो ?
मैं तुम्हारी जय कहना
चाहता हूँ.
बरसों से हूँ मैं तुम्हारी
खोज में,
तुम शून्य हो या हो
सर्वव्यापी,
ईश्वर की तरह .
कौन हो तुम ?
तुम भारत भूमि तो नहीं ,
भारत तो माता है,
माता कभी अधिनायक तो नहीं
होती .
तुम हो भारत भाग्य विधाता
.
फिर बदला क्यों नहीं भारत
का भाग्य.
भारत के भाग्य का ऐसा
क्यों लिखा विधान.
कैसे विधाता हो ?
तुम्हारा स्वरुप तुम्हारी
प्रकृति कैसी है?
मैं तुम्हारी जय कहना
चाहता हूँ
मन मथ रहा है ..
............... नीरज
कुमार ‘नीर’
सुन्दर लिखा है !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!!
ReplyDeleteतुम शून्य हो या हो सर्वव्यापी
ReplyDeleteईश्वर की तरह
कौन हो तुम
बहुत सुंदर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteअच्छा प्रश्न है
latest post नए मेहमान
आपका बहुत आभार..
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteअच्छा प्रश्न
ReplyDeleteतुम शून्य हो
या हो सर्वव्यापी
ईश्वर की तरह
कौन हो तुम ?
बहुत सुंदर प्रस्तुति
द्वन्द्व है कि भारत माँ है कि अधिनायक है। सही प्रश्न।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} के शुभारंभ पर आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल किया गया है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {रविवार} (25-08-2013) को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया ..
Deleteउत्तम प्रस्तुति...विचार करने को विवश करती रचना।।।
ReplyDelete"फिर बदला क्यों नहीं भारत का भाग्य"
ReplyDeleteना जाने कब उत्तरित हो पायेगा यह प्रश्न. काश कोई उत्तर तुरत आता! शुरुआत ही जब ऐसी हुई थी शायद यही होना था.
कौन हो तुम ?
जन गण मन के अधिनायक
कहां रहते हो ?
अता-पता ही नहीं जी ...
बंधुवर नीरज कुमार ‘नीर’ जी
रचना के माध्यम से विचारणीय प्रश्न रखा है आपने...
ये और बात है कितने पाठकों ने गंभीरता से तह में जाने का प्रयास किया होगा ।
वैसे
जन गण मन की असलियत के संदर्भ में स्वयं रवीन्द्र नाथ टैगोर का लिखा पत्र पढ़ने के लिए इस लिंक को देख कर बहुत कुछ जाना जा सकता है...
हार्दिक शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुंदर रचना ! वैसे तो रवीन्द्र बाबू ने यह रचना परमपिता परमेश्वर को आधार मान कर की थी लेकिन इस समय जो जो सत्ता संचालन कर रहे हैं उनसे बेबाक सवाल किये हैं आपने जो हर भारतवासी की पीड़ा का प्रतिनिधित्व करते हैं ! बहुत खूब !
ReplyDeleteकविता में धधकती आक्रोश को सहज महसूस कर सकते है. सुंदर रचना.
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