काल के चूल्हे पर
काठ की हांडी
चढ़ाते हो बार बार .
हर बार नयी हांडी
पहचानते नहीं काल चिन्ह को
सीखते नहीं अतीत से .
दिवस के अवसान पर
खो जाते हो
तमस के आवरण के भीतर
रास रंग और श्रृंगार में .
आँखों पर चढ़ा लिया
झूठ और ढकोसले का चश्मा.
अपनी कायरता को
प्रगतिशीलता का नाम देकर .
तुम्हे साफ़ दिखाई नहीं
देता.
तुम सच देखना भी नहीं
चाहते .
क्षणिक स्वार्थों ने
तुम्हे अँधा कर दिया.
पर याद रखना
निरपेक्षता , निष्क्रियता
से बड़ा अपराध है .
हिजड़ों का भी एक अपना पक्ष
होता है ..
…………. नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer
#neeraj_kumar_neer
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeletelatest postएक बार फिर आ जाओ कृष्ण।
बहुत बढ़िया उम्दा प्रस्तुति,,,नीरज जी,,
ReplyDeleteRECENT POST : फूल बिछा न सको
सब अंधी दौड़ में भागने को बेताब हैं. आत्म-संधान का वक़्त किसे है. सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत शुक्रिया अरुण जी
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन.
ReplyDeleteजो तटस्थ है समय लिखेगा उसका भी अपराध !
ReplyDeleteसशक्त संप्रेषण
ReplyDeleteनिरपेक्षता , निष्क्रियता से बड़ा अपराध है .
ReplyDeleteओह सोच रही हूँ … आभार !
बहुत ओरभावी .. पूर्णतः सहमत आपकी बात से ... जो निरपेक्ष रहेगा, तठस्थ रहेगा .. काल तो जवाब मांगेगा उससे भी ...
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...........मेरे ब्लॉग पर भी पधारे ........
ReplyDeleteसबका अपना पक्ष होता है ....लेकिन निरपेक्ष भाव ही शायद सच्चा न्याय कर सकता है .... यह सबसे बड़ा पाप क्योंकर हुआ .... समझ से परे है ।
ReplyDeleteहर व्यक्ति की अपनी सोच होती है ....अपना पक्ष..अपना स्टैंड ...लेकिन क्या उसे किसी और पर थोपना उचित है ....ऐसे में क्या निरपेक्ष रहना ही बेहतर नहीं ...
ReplyDeleteआदरणीय सरस जी जब हर व्यक्ति का अपना पक्ष होता है तो कोई निरपेक्ष हो ही नहीं सकता .. किसी पर कोई अपना पक्ष ना थोपे, यही उचित एवं आदर्श अवस्था है लेकिन सत्ता के स्वार्थ में अंधे लोग यह नहीं देख पाते..
ReplyDeleteमैं आपके बात से बिल्कुल सहमत हूँ.………
ReplyDeleteयदि कोई निरपेक्षता अपनाते हैं... तो मतलब.. सत्य का भी साथ नहीं देंगे... जो गलत है ...
पहली बार हूं आपके ब्लॉग पर ...अच्छी लगी आपकी रचना...
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