Saturday, 31 August 2013

काठ की हांडी



काल के चूल्हे पर
काठ की हांडी
चढ़ाते हो बार बार .
हर बार नयी हांडी
पहचानते नहीं काल चिन्ह को
सीखते नहीं अतीत से .
दिवस के अवसान पर
खो जाते हो
तमस के आवरण के भीतर
रास रंग और श्रृंगार में .
आँखों पर चढ़ा लिया
झूठ और ढकोसले का चश्मा.
अपनी कायरता को प्रगतिशीलता का नाम देकर .
तुम्हे साफ़ दिखाई नहीं देता.
तुम सच देखना भी नहीं चाहते .
क्षणिक स्वार्थों ने तुम्हे अँधा कर दिया.
पर याद रखना
निरपेक्षता , निष्क्रियता से बड़ा अपराध है .
हिजड़ों का भी एक अपना पक्ष होता है ..

…………. नीरज  कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer 

17 comments:

  1. बहुत बढ़िया उम्दा प्रस्तुति,,,नीरज जी,,

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  2. सब अंधी दौड़ में भागने को बेताब हैं. आत्म-संधान का वक़्त किसे है. सुन्दर रचना.

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  3. बहुत ही बेहतरीन.

    रामराम.

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  4. बहुत शुक्रिया अरुण जी

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  5. बहुत ही बेहतरीन.

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  6. जो तटस्थ है समय लिखेगा उसका भी अपराध !

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  7. निरपेक्षता , निष्क्रियता से बड़ा अपराध है .
    ओह सोच रही हूँ … आभार !

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  8. बहुत ओरभावी .. पूर्णतः सहमत आपकी बात से ... जो निरपेक्ष रहेगा, तठस्थ रहेगा .. काल तो जवाब मांगेगा उससे भी ...

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  9. सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...........मेरे ब्लॉग पर भी पधारे ........

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  10. सबका अपना पक्ष होता है ....लेकिन निरपेक्ष भाव ही शायद सच्चा न्याय कर सकता है .... यह सबसे बड़ा पाप क्योंकर हुआ .... समझ से परे है ।

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  11. हर व्यक्ति की अपनी सोच होती है ....अपना पक्ष..अपना स्टैंड ...लेकिन क्या उसे किसी और पर थोपना उचित है ....ऐसे में क्या निरपेक्ष रहना ही बेहतर नहीं ...

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  12. आदरणीय सरस जी जब हर व्यक्ति का अपना पक्ष होता है तो कोई निरपेक्ष हो ही नहीं सकता .. किसी पर कोई अपना पक्ष ना थोपे, यही उचित एवं आदर्श अवस्था है लेकिन सत्ता के स्वार्थ में अंधे लोग यह नहीं देख पाते..

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  13. मैं आपके बात से बिल्कुल सहमत हूँ.………
    यदि कोई निरपेक्षता अपनाते हैं... तो मतलब.. सत्य का भी साथ नहीं देंगे... जो गलत है ...

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  14. पहली बार हूं आपके ब्लॉग पर ...अच्छी लगी आपकी रचना...

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