जिसकी होती है चाहत वो हकीकत नहीं मिलती,
दिले आशना को अक्सर रफाकत नहीं मिलती.
रहता है अक्सर गुमाँ उनकी चाहत का मुझको
इस बदगुमानी से कभी राहत नहीं मिलती ..
पहले मिला करते थे कभी गाहे बगाहे यहाँ वहां ,
उन्हें आजकल मिलने की फुर्सत नहीं मिलती.
सब कुछ मिलता है यहाँ वाजिब दाम के बदले,
शरीफों की बस्ती में बस शराफत नहीं मिलती.
टूट कर बिखर जाओगे शीशे की तरह ‘नीरज’,
इस बस्ती के लोगों से तेरी आदत नहीं मिलती.
... नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer
#neeraj_kumar_neer
बहुत सुंदर गजल.
ReplyDeleteरहता है अक्सर गुमाँ उनकी चाहत का मुझको
ReplyDeleteइस बदगुमानी से कभी राहत नहीं मिलती
किसी चीज में जब आस्था और अटूट लगाव हो तो सचमुच राहत नहीं मिलती. सुन्दर ग़ज़ल.
बहुत उम्दा ग़ज़ल !
ReplyDeleteप्रवास के कारण एक सप्ताह ब्लॉग पर आ नहीं पाया !
Nice
ReplyDeleteरहता है अक्सर गुमाँ उनकी चाहत का मुझको
ReplyDeleteइस बदगुमानी से कभी राहत नहीं मिलती --
बढ़िया प्रस्तुति-
आभार आदरणीय-
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल !!
ReplyDeleteबेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह!!! बहुत सुंदर प्रभावशाली रचना
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
आग्रह है--
आशाओं की डिभरी ----------
खुबसूरत , शानदार रचना
ReplyDeleteपहले मिला करते थे कभी गाहे बगाहे यहाँ वहां ,
ReplyDeleteउन्हें आजकल मिलने की फुर्सत नहीं मिलती...
बहुत ही लाजवाब शेर है इस गज़ल का .... मज़ा आया नीरज जी ...
बहुत खूब.
ReplyDeleteबहुत खूब गजल !
ReplyDeleteपहले मिला करते थे कभी गाहे बगाहे यहाँ वहां ,
ReplyDeleteउन्हें आजकल मिलने की फुर्सत नहीं मिलती.
(वाह वाह वाह वाह सच्ची बात कही आप अपने) awesome