Sunday, 24 November 2013

बदगुमानी



जिसकी होती है चाहत वो हकीकत नहीं मिलती, 
दिले आशना को अक्सर रफाकत नहीं मिलती. 

रहता है अक्सर गुमाँ उनकी चाहत का मुझको 
इस बदगुमानी से कभी राहत नहीं मिलती ..

पहले मिला करते थे कभी गाहे बगाहे यहाँ वहां , 
 उन्हें आजकल मिलने की फुर्सत नहीं मिलती.

सब कुछ मिलता है यहाँ वाजिब दाम के बदले,  
शरीफों की बस्ती में बस शराफत नहीं मिलती.

टूट कर बिखर जाओगे शीशे  की तरह ‘नीरज’,
इस बस्ती के लोगों से तेरी आदत नहीं मिलती. 

... नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer 

13 comments:

  1. रहता है अक्सर गुमाँ उनकी चाहत का मुझको
    इस बदगुमानी से कभी राहत नहीं मिलती

    किसी चीज में जब आस्था और अटूट लगाव हो तो सचमुच राहत नहीं मिलती. सुन्दर ग़ज़ल.

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  2. बहुत उम्दा ग़ज़ल !
    प्रवास के कारण एक सप्ताह ब्लॉग पर आ नहीं पाया !

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  3. रहता है अक्सर गुमाँ उनकी चाहत का मुझको
    इस बदगुमानी से कभी राहत नहीं मिलती --

    बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय-

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  4. बहुत खुबसूरत ग़ज़ल !!

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  5. बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति

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  6. वाह!!! बहुत सुंदर प्रभावशाली रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

    आग्रह है--
    आशाओं की डिभरी ----------

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  7. खुबसूरत , शानदार रचना

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  8. पहले मिला करते थे कभी गाहे बगाहे यहाँ वहां ,
    उन्हें आजकल मिलने की फुर्सत नहीं मिलती...

    बहुत ही लाजवाब शेर है इस गज़ल का .... मज़ा आया नीरज जी ...

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  9. पहले मिला करते थे कभी गाहे बगाहे यहाँ वहां ,
    उन्हें आजकल मिलने की फुर्सत नहीं मिलती.
    (वाह वाह वाह वाह सच्ची बात कही आप अपने) awesome

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