पथिक अभी विश्राम कहाँ
मंजिल पूर्व आराम कहाँ.
रवि सा जल
ना रुक, अथक चल.
सीधी राह एक धर.
रह एकनिष्ठ
बढ़ निडर .
अभी सुबह है,
बाकी है अभी
दुपहर का तपना.
अभी शाम कहाँ,
मंजिल पूर्व आराम कहाँ.
चलना तेरी मर्यादा,
ना रुक, सीख बहना.
अवरोधों को पार कर
मुश्किलों को सहना.
आगे बढ़ , बन जल
स्वच्छ, निर्मल.
अभी दूर है सिन्धु
अभी मुकाम कहाँ
मंजिल पूर्व आराम कहाँ ..
पथिक अभी विश्राम कहाँ
मंजिल पूर्व आराम कहाँ....
#neeraj_kumar_neer
..... नीरज कुमार नीर
बहुत अच्छी प्रेरणादायी रचना...
ReplyDelete:-)
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteनई पोस्ट चंदा मामा
नई पोस्ट विरोध
मनोहारी एवं प्रभावी.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeletebahut badhiya
ReplyDeleteऐसा है दृढ धैर्य हो तभी किनारा मिलता है. अति सुन्दर.
ReplyDeleteuttam rachna
ReplyDeleteचलते चलते बढ़ते जाना,
ReplyDeleteमन से मन की कहते जाना।
कल 18/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत धन्यवाद ..
Deleteओज़स्वी ... आशा का संचार करती .. अग्रसर को प्रेरित करती भावभीनी रचना ...
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा,प्रेरक प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST -: एक बूँद ओस की.
सुंदर प्रेरक रचना......
ReplyDeleteअभी कहाँ आराम बदा है ..........
ReplyDeleteमंजिल पर पहुँचने का लक्ष्य रखने वालों को चैन कहाँ आराम कहाँ.इस पथिक को तो चलते रहना ही होगा.सुन्दर रचना.
ReplyDeleteवाह !! बहुत सुंदर रचना .....
ReplyDeleteसही खा नीरज जी, मंजिल पूर्व आराम कहाँ !
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