शहर की गंदी बस्तियों में
कभी भी वसंत नहीं आता.
नलों की लंबी लाइनों में
बजबजाती सड़ी नालियों में,
सर टकराते छप्परों में
औरतों की नित गालियों में,
रोज रोज की हुज्जतों का
कभी भी अंत नहीं आता.
झूठ पाखण्ड अंधविश्वास
की खूब महफ़िल सजती है.
पंडितों और मौलाना की
मन मर्जी खूब चलती है.
असमय होती मौतों का पर
कभी भी अंत नहीं आता .
शहर की गंदी बस्तियों में
कभी भी वसंत नहीं आता.
कुत्तिया के पिल्लों के संग
सुगिया की बच्ची पलती है.
भूख की आग में न जाने
कितनी उम्मीदें जलती है.
अपूर्ण रहे उम्मीदों का
कभी भी अंत नहीं आता.
शहर की गंदी बस्तियों में
कभी वसंत नहीं आता.
शिशुओं के नाजुक कन्धों पर
बस्ते की जगह में भार है.
उसकी कमाई से चलता
उसका बीमार परिवार है.
दुःख है उनकी जीवन नियति
दुःख का अंत नहीं आता.
शहर की गंदी बस्तियों में
कभी भी वसंत नहीं आता.
…………. नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer
#neeraj_kumar_neer
bahut bachcha hai ,
ReplyDeletesahi bat hai aise men basant ka aana kahan sambhaw ho pata ..dil kebhawon ki sundar prastuti ......
ReplyDeleteशिशुओं के नाजुक कन्धों पर
ReplyDeleteबस्ते की जगह में भार है.
उसकी कमाई से चलता
उसका बीमार परिवार है.
बहुत सुंदर रचना.इन हालातों में वसंत की बात बेमानी है.
मर्मस्पर्सी रचना ...!!! इस दयनीय स्थिति में बसंत आने का कोई मतलब नहीं उनके लिए ....
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति- -
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
बसंत तो आज भी आता है पर खो के रह जाता है ... अभागा है इंसान जो खुद के बनाए जाल में फंस कर कुछ भी देख नहीं पाता ...
ReplyDeleteकभी वहाँ की भी ऋतु बदले।
ReplyDeleteबसंत भी समृद्धों की धरोहर है ....और गरीब.....उसके पास समय ही कहाँ है ...खूबसूरती निहारने का ......जब आंतें भूख से कुलबुलातीं हों .....तो सिर्फ एक ही मौसम रहता है ...भूख का.....
ReplyDeleteकड़वी सच्चाई .....सुन्दर रचना ....
ReplyDeleteकल 27/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
महीन नज़र से आपने कविता के माध्यम से जिस सच्चाई का वर्णन किया है वह बहुत ही प्रशंसनीय है.
ReplyDeleteवाह......दिल छू लेने वाली रचना .....दो समय की रोटी की जुगत में वसंत छिप सा जाता है ..
ReplyDeleteमर्मस्पर्सी रचना
ReplyDeleteसुंदर ।
ReplyDeleteसंसार के निर्मम यथार्थ को उजागर करती बहुत ही उत्कृष्ट रचना ! बहुत सुन्दर !
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