मेरी मुलाकात
हुई, एक मरे हुए आदमी से.
आँखों पर चश्मा,
सड़क के बायीं ओर
चल रहा था.
शक्ल , सूरत से पढ़ा लिखा
बुद्धिजीवि लग रहा था.
मैने उससे पूछा सवाल,
पिछली बार,
तुम्हें कर दिया गया था बेघर,
लूट कर घर बार,
छोड़ना पड़ा था अपना देश
फिरे थे मारे मारे
छीन ली गयी थी बीवियां.
बेटियों का हुआ था बलात्कार.
बिना किसी प्रतिरोध के तुमने
किया था सब कुछ स्वीकार.
परिस्थितियां ले रही
पुनः इस बार
वैसा ही आकार.
इस बार क्या प्रतिरोध करोगे
या झुकी आँखों से
मान इसे नियती
सब चुपचाप ही सहोगे ?
उसने कहा
बगैर नजर उठाये उन्मन से.
मेरे जीवन के मूल्य
महत्वपूर्ण है मेरे जीवन से.
जिन्होंने मुझ पर किया था अत्याचार,
दरअसल वे तो थे महज बेरोजगार.
सारी समस्या की जड़ बस अर्थ है.
मैने सोचा, यह आदमी है मरा हुआ,
इससे बात करना व्यर्थ है.
घरों की खिड़कियाँ जब
बड़ी हो जाएँ घर से
खिड़कियाँ खा जाती है ऐसे घर को.
नैतिकता जब हावी हो व्यक्ति पर
लड़ने के डर से,
नैतिकता खा जाती है
व्यक्तित्व को.
जब तक जीवन है तभी तक
जीवन मूल्य का अर्थ है
मरे हुए आदमी की नैतिकता बे अर्थ है .
...........नीरज कुमार नीर
चित्र गूगल से साभार
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जीवन मूल्य का अर्थ है
ReplyDeleteमरे हुए आदमी की नैतिकता बे अर्थ है .
बहुत खूब ...!
RECENT POST - आज चली कुछ ऐसी बातें.
bahut badhiya .......
ReplyDeleteबहुत खूब :)
ReplyDeleteआप ठीके लिखकर आए थे हमरे ब्लॉग पर कि आप हमरे जइसा नहीं लिखते हैं... असल में आप हमसे भी बढियाँ लिखते हैं... कमाल है आपका अभिव्यक्ति अऊर हर बात कहने के लिये उपजुक्त सब्द.. बात का असर जहाँ होना चाहिये, ओहीं होता है बिना कोनो भटकाव के..
ReplyDeleteहमरे तरफ से सुभकामना!!
आपका ब्लॉगवा अपना लिस्ट में जोड़ लिये हैं.. अब आना जाना लगले रहेगा!!
बहुत खूब !
ReplyDeleteमरे हुए आदमी की नैतिकता बे अर्थ है ...सत्य कहा
ReplyDeleteआदमी का स्वाभिमान जब समाप्त हो जाता है नैतिकता उस पर हावी हो जाती है और अपने ऊपर अत्याचार को चुपचाप सहता है तो वहा मरे हुए के सामान ही है| अपने या अपने लोगों पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए प्रोत्साहित करने वाली कविता |
ReplyDeleteबहुत खूब.....
ReplyDeleteगहन चिंतन लिये सार्थक रचना ! बहुत सुंदर !
ReplyDeleteआभार अभी जी ..
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti
ReplyDeleteबहुत जुदा सी , गहरी कविता.
ReplyDeleteहर हाल में जीवित रहने और संघर्ष करने का प्रयास होना चाहिए ...
ReplyDeleteअच्छी रचना है ...
घरों की खिड़कियाँ जब
ReplyDeleteबड़ी हो जाएँ घर से
खिड़कियाँ खा जाती है ऐसे घर को.
...बहुत सटीक और लाज़वाब अभिव्यक्ति...
मरे हुए आदमी की नैतिकता बे अर्थ है .
ReplyDeleteबहुत खूब ...!
Gahari Baat.... Marmsparshi Kavita
ReplyDeleteअनूठापन है इस रचना में , बधाई !
ReplyDeleteबड़ी हो जाएँ घर से
ReplyDeleteखिड़कियाँ खा जाती है ऐसे घर को.
.......बहुत सटीक और लाज़वाब अभिव्यक्ति
Recent Post वक्त के साथ चलने की कोशिश
neeraj ji--behtar kaha aapne--jine ki jaddo jahad me uljhe huye se uljhane ka kya arth hai, berojgaar admi hakikat me mara huwa hai, usse bat karna hi byarth hai....sadhuvad
ReplyDeleteज्यादातर हिन्दुस्तानियों की यही नियति और यही विडम्बना है !सार्थक शब्द
ReplyDeleteमज़बूरी का नाम...
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत खूब
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