कहो प्रिय , कैसे सराहूँ
मैं सौंदर्य तुम्हारा.
मैं चाहता हूँ.
तुम्हारे मुख को कहूँ माहताब
अधरों को कहूँ लाल गुलाब
महकती केश राशि को संज्ञा दूँ
मेघ माल की
लहराते आँचल को कहूँ
मधु मालती
पर, अपवर्तन का अपना नियम है
मेरी दृष्टि गुजरती है,
तुम तक पहुचने से पहले
संवेदना के तल से,
और हो जाती है अपवर्तित
सड़क किनारे डस्टबिन में
खाना ढूंढते व्यक्ति पर,
प्लेटफार्म पर भीख मांगते
चिक्कट बालों वाली
छोटी लड़की पर..
देश के भविष्य से खेलते
झूठे वादे और बकवाद करते नेताओं पर.
मेरी संवेदना तुम्हें शायद
अर्थ हीन लगे, पर
यही है मेरा सत्य,
मेरा तल.
कहो प्रिय, कैसे सराहूँ
मैं सौंदर्य तुम्हारा..
नीरज कुमार ‘नीर’
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