Wednesday, 21 May 2014

अपवर्तन का नियम

कहो प्रिय , कैसे सराहूँ 
मैं सौंदर्य तुम्हारा.
मैं चाहता हूँ.
तुम्हारे मुख को कहूँ माहताब 
अधरों को कहूँ लाल गुलाब 
महकती केश राशि को संज्ञा दूँ 
मेघ माल की 
लहराते आँचल को कहूँ 
मधु मालती 
पर, अपवर्तन का अपना नियम है 
मेरी दृष्टि गुजरती है,
तुम तक पहुचने से पहले 
संवेदना के तल से,
और हो जाती है अपवर्तित
सड़क किनारे डस्टबिन में 
खाना ढूंढते व्यक्ति पर, 
प्लेटफार्म पर भीख मांगते 
चिक्कट बालों वाली 
छोटी लड़की पर..
देश के भविष्य से खेलते 
झूठे वादे और बकवाद करते नेताओं पर.
मेरी संवेदना तुम्हें शायद 
अर्थ हीन लगे, पर 
यही है मेरा सत्य,  
मेरा तल.  
कहो प्रिय, कैसे सराहूँ 
मैं सौंदर्य तुम्हारा..

नीरज कुमार ‘नीर’
#neeraj_kumar_neer
#hindi_poem #gulab  #प्लैटफ़ार्म #हिन्दी_कविता #अपवर्तन 

Sunday, 18 May 2014

सत्य की राह


सत्य की राह
होती है अलग,
अलग, अलग लोगों के लिए.
किसी का श्वेत ,
श्याम होता है किसी के लिए .
श्वेत श्याम के झगड़ें में
जो गुम  होता है
वह होता है सत्य,
सत्य सार्वभौमिक है,
पर सत्य नहीं हो सकता
सामूहिक .
सत्य निजता मांगता है ,
हरेक का सत्य
तय होता है
निज अनुभूति से.
......
... नीरज कुमार नीर 
चित्र गूगल से साभार 

Tuesday, 13 May 2014

स्वप्न और सत्य


कभी कभी खो जाता हूँ ,
भ्रम में इतना कि 
एहसास ही नहीं रहता कि 
तुम एक परछाई हो..
पाता हूँ तुम्हें खुद से करीब 
हाथ बढ़ा कर छूना चाहता हूँ.
हाथ आती है महज शून्यता .
स्वप्न भंग होता है ..
 सत्य साबित होता है
क्षणभंगुर.
स्वप्न पुनः तारी होने लगता है.
पुनः आ खड़ी होती हो
नजरों के सामने .. 

नीरज कुमार नीर
चित्र गूगल से साभार 

Saturday, 10 May 2014

मेरी अगर माँ ना होती


मातृ दिवस के अवसर पर विश्व की समस्त माओं को समर्पित
......................................................
मेरी अगर माँ ना होती 
मैं कहाँ से होता,
किसकी अंगुली पकड़ के चलता 
किसका नाम लेकर रोता.

चलना फिरना हँसना गाना 
तेरी भांति माँ मुस्काना 
प्रेम के एक एक आखर 
पग पग संस्कार सिखलाना 
गोदी में सिर रखकर आखिर 
निर्भीक कहाँ मैं सोता .

दुनियांदारी के कथ्य अकथ्य
जीवन यात्रा के सत्य असत्य
रंगमंच के सारे पक्ष 
कुछ प्रत्यक्ष, कुछ नेपथ्य 
राजा रानी  के किस्सों संग 
मन माला में कौन पिरोता..

ये जो वायु, आती जाती है 
बल, रूप, यौवन सजाती है 
दुनियां भर के सारे सुख 
नित्य नवीन दिखलाती है 
ये तो ऋण तुम्हारा है माँ 
बस रहता हूँ मैं ढोता.

मेरी अगर माँ ना होती 
मैं कहाँ से होता.

... नीरज कुमार नीर 
चित्र गूगल से साभार                                                                                 #neeraj_kumar_neer
#mothersday #matri-diwas #maa #माँ #मातृदिवस #जीवन #प्रेम 

Thursday, 1 May 2014

क्यों गाती हो कोयल


क्यों गाती हो कोयल 
होकर इतना विह्वल 

है पिया मिलन की आस
या बीत चुका मधुमास 
वियोग की है वेदना 
या पारगमन है पास 
मत जाओ न रह जाओ
यह छोड़ अम्बर  भूतल  

क्यों गाती हो कोयल 
होकर इतना विह्वल 

तू गाती तो आता 
यह वसंत मदमाता 
तू आती तो आता 
मलयानिल महकाता 
तू जाती तो  देता 
कर जेठ मुझे बेकल 

क्यों गाती हो कोयल 
होकर इतना विह्वल 


कलियों का यह देश
रह बदल कोई वेष
सुबह सबेरे आना
लेकर प्रेम सन्देश
गाना मेरी खिड़की
पर कोई गीत नवल

क्यों गाती हो कोयल 
होकर इतना विह्वल ..

नीरज कुमार नीर ........ #neeraj_kumar_neer 
इस गीत को मेरे एक मित्र ने अपनी खूबसूरत आवाज से संवारा हैं ... आप नीचे दिए लिंक पर क्लिक कर इसे अवश्य सुने ..  https://soundcloud.com/parul-gupta-2/kyu-gati-ho

#कोयल #कोयल #गीत #prem_geet 

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...