की दवा जितनी मरज़ बढ़ता गया,
दोपहर के धूप सा चढ़ता गया।
खूं बहाने की वहीं तैयारियां,
अम्न का मरकज जिसे समझा गया।
साँप हैं पाले हुए आस्तीनों में,
दूध पीया और ही बढ़ता गया ।
है उसी की ही वजह से आसमां,
राह में जो भी मिला कहता गया।
बढ़ गयी कुछ और ही उसकी चमक,
सोना ज्यों ज्यों आंच में तपता गया ।
.......
#नीरज कुमार नीर
#Neeraj_kumar_neer
#gazal
#gazal
आपकी लिखी रचना शनिवार 13 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
आभार आपका ॥
ReplyDeleteसुंदर गज़ल.
ReplyDeleteबढ़ गयी कुछ और ही उसकी चमक,
ReplyDeleteसोना ज्यों ज्यों आंच में तपता गया.. सुंदर ग़ज़ल नीरज जी!
धरती की गोद
नीरज जी ... भावपूर्ण है हर शेर ... काफिये की कुछ दोष तो समय और अनुभव से दूर होते रहेंगे ...
ReplyDeleteमान्यवर दोष तो दूर होंगे , पर है क्या ??? :)
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबढ़ गयी कुछ और ही उसकी चमक,
ReplyDeleteसोना ज्यों ज्यों आंच में तपता गया ।
बहुत सुन्दर शेर है यह.
गजल का ज्ञान थोड़ा कम है मुझे पर रचना बड़ी ही लाजवाब लगी।
ReplyDeleteआप भी पहुंचें मेरे ब्लॉग तक
रंगरूट
बहुत बढ़िया
ReplyDelete