पानी को तलवार से काटते क्यों हो ?
हिन्दी हैं हम सब, हमे बांटते क्यों हो ?
चरखे पे मजहब की पूनी चढ़ा कर के ,
सूत नफरत की यहाँ कातते क्यों हो ?
हो सभी को आईना फिरते दिखाते ,
आईने से खुद मगर भागते क्यों हो ?
गर करोगे प्यार , बदले वही पाओगे,
वास्ता मजहब का देके मांगते क्यों हो ?
भर लिया है खूब तुमने तिजोरी तो ,
चैन से सो, रातों को जागते क्यों हो ?
दाम कौड़ियों के हो बेचते सच को
रोच परचम झूठ का छापते क्यों हो ?
धर्म और ईमान के गर मुहाफ़िज़ हो
मज़लूमों को फिर भला मारते क्यों हो ?
-----------
(c) नीरज नीर
अगर बात अच्छी लगे तो अपनी टिप्पणी अवश्य दें ।
sahi sawal uthaye aapne sundar rachna ke madhym se ....
ReplyDeleteऐसे प्रश्न जो सदा से अनुत्तरित ही रहते आये हैं ! सुन्दर रचना !
ReplyDeleteMitrawar meri mitrata sweekaar karen. Aapke Bhavon ne Bhavbibhor Kar diya.
ReplyDeleteकल 21/सितंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
मन को छूती सुंदर रचना ---
ReplyDeleteवाह बहुत खूब -----
बेहतरीन ग़ज़ल. सुन्दर प्रवाह है शेरों का.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना के लिए बधाई स्वीकार करें |
ReplyDeleteहो सभी को आईना फिरते दिखाते ,
ReplyDeleteआईने से खुद मगर भागते क्यों हो ..
वाकिफ हैं वो इस आईने की हकीकत से ... दूसरों को दिखाना तो आसान है ...
लाजवाब शेर है इस ग़ज़ल का ...
kya baat hai..behtareen hai
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteभर लिया है खूब तुमने तिजोरी तो ,
ReplyDeleteचैन से सो, रातों को जागते क्यों हो ?...सुंदर रचना! के लिए आभार! आदरणीय नीरज जी!
धरती की गोद
ज्वलंत सवाल उठाती सुंदर गज़ल.
ReplyDeleteबहुत अच्छा ब्लॉग है आपका !
ReplyDeleteआपके ब्लॉग को फॉलो कर रहा हूँ
आपसे मेरा अनुरोध है की मेरे ब्लॉग पर आये
और फॉलो करके अपने सुझाव दे
बहुत बढ़िया गजल चौथे शेर में मांगते शब्द थोडा अटका बाकी शेरो में भागते जागते आदि इस प्रकार के शब्द हैं ये बस एक सुझाव है अन्यथा ना ले
ReplyDeletePANI KO TALWAR SE KATATE KYUN HO, HINDI HAIN HAM SAB BAATATE KYUN HO...BAHUT KHOOB NEERAJ JI...THEEK VAISE HI JAISE KI... HINDI HAIN HAM VATAN HAIN HINDUSTAAN HAMAARA...SADHUVAD
ReplyDeleteसुंदर सार्थक रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहो सभी को आईना फिरते दिखाते ,
आईने से खुद मगर भागते क्यों हो ?