मुझे अच्छी लगती है
निंबौरियां और
उसका कसैलापन
पीली निबौरियों की कड़वाहट
जब घुलती है
गौण कर देती हैं
अंतर के आत्यंतिक कड़वाहट को भी।
तुमने जो भर रखी है
मुट्ठी में निंबौरिया
क्या एक दोगी मुझे?
मैं आत्म विस्मृत होना चाहता हूँ
कुछ पल के लिए।
मैं लौटा दूँगा तुम्हें
तुम्हारे हाथों की मिठास और
नीम की घनी छांव
...... नीरज कुमार नीर........
neeraj kumar neer
वाह ... प्राकृति के मीठे रंग में रंगी लाजे=वाब रचना ...
ReplyDeleteकई बार कड़वाहट ही मिठास का रास्ता खोलती है. सुन्दर लिखा है.
ReplyDeleteकड़वी चीजें और कड़वे इन्सान हमारे लिए लाभदायक हो सकते हैं! आदरणीय नीरज जी चिंतन योग्य, काव्य प्रस्तुति! साभार!
ReplyDeleteधरती की गोद
kyaa baat hai neeraj ji bahut badhiya
ReplyDeleteसुखद एहसास के लिए कड़वा घूँट भी कभी कभी लेना होता है ! मधुर रचना नीरज जी
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