सहिष्णुता के सबसे बड़े पैरोकार
डाल देते हैं नमक
अपने विरोधियों की लाशों पर .......
चमक उठती हैं उनकी आँखे
जब जंगल के भीतर
रेत दी जाती है गर्दनें
लेवी की खातिर ....
और जो असहिष्णु हैं
अपने काम को देते हैं
सरंजाम
बीच चौराहे पर
ताकि सनद रहे.....
छल प्रपंच और सुविधा के अनुसार रचे गए
इन छद्म विचारों के खुरदरे पाटों के बीच
पीसती है मानवता
माँगती है भीख
मंदिर, मस्जिद, गिरिजा के चौखटों पर
और लहूलुहान नजर आती है
लाल झंडे के नीचे.....
भेड़ियों के झगड़े में
हमेशा नुकसान में रहते हैं
हिरण के छौने ही।
------ #नीरज कुमार नीर / 23.05.2015
#neeraj
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (26-08-2016) को "जन्मे कन्हाई" (चर्चा अंक-2446) पर भी होगी।
ReplyDelete--
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
क्या बात है... बहुत ही ज़बरदस्त प्रस्तुति और सोने सी खरी बात! प्रभावशाली कविता!
ReplyDeleteसुन्दर और सटीक प्रस्तुति
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "भूली-बिसरी सी गलियाँ - 8 “ , मे आप के ब्लॉग को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत प्रभावी रचना ... सच लिखा है आज के हालात पर ...
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