Tuesday 1 October 2013

उडो तुम




उडो तुम
उडो व्योम के वितान में.
पसारो पंख निर्भय .
अश्रु धार से
                   नहीं हटेगी चट्टान                   
जो है जीवन की राह में ,
मार्ग अवरुद्ध किये,
खुशियों की .
गगन की ऊंचाई से
सब कुछ छोटा लगता है.
और तुम बड़े हो जाते हो.
गुनगुनाओ कि
गुनगुनाने से जन्मता है राग
मिटता है राग .
सप्तक के गहन सागर में
जब सब शून्य हो जाता है
अस्तित्व का आधार भी और
होता है, सिर्फ आनंद. 
बिस्तर की नमकीन चादर को
धुप दिखा कर 
फिर टांग दो परदे की तरह
अपने और दुखों के बीच ..

#neeraj_kumar_neer 
...... नीरज कुमार ‘नीर’ 


चित्र गूगल से साभार ..

20 comments:

  1. बहुत सुंदर ...गहरे भावों और सकरात्मक उर्जा सी अभिव्यक्ति
    सुन्दरम

    ReplyDelete
  2. उत्साह भरती पंक्तियाँ

    ReplyDelete
  3. आपकी लिखी रचना की ये चन्द पंक्तियाँ.........
    उडो तुम
    उडो व्योम के वितान में.
    पसारो पंख निर्भय .
    अश्रु धार से
    नहीं हटेगी चट्टान

    बुधवार 02/10/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

    ReplyDelete
  4. क्या बात है...
    सुंदर भाव।

    ReplyDelete
  5. मित्र ! गान्धी जयन्ती /लाल बहादुर शास्त्री-जयंती की अग्रिम वधाई हम बढ़ाएँ एक क़दम
    स्वस्थ 'गान्धी-वाद' की ओर !
    अथ आप की रचना उत्साह वर्द्धक है !

    ReplyDelete
  6. बहुत खूब लिखा है | मैंने आपका ब्लॉग फॉलो कर लिया है | आप भी पधारें |

    मेरी नई रचना :- जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता)

    ReplyDelete
  7. सुंदर.....खुबसूरत रचना......

    ReplyDelete
  8. जब सब शून्य हो जाता है
    अस्तित्व का आधार भी और
    होता है, सिर्फ आनंद.
    बिस्तर की नमकीन चादर को
    धुप दिखा कर
    फिर टांग दो परदे की तरह
    अपने और दुखों के बीच ..

    बहुत सुन्दर सार्थक लेखन सशक्त बिम्ब विधान।

    (,टांग ,धूप )

    उड़ो तुम
    नीरज नीर

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर लिखा है आपने. वाकई आंसुओं के धार बेकार ही जाती हैं अक्सर. राम भी सेतु निर्माण अनुनय-विनय करके कहाँ कर पाए थे. वहीँ तलवार का तेज देखकर ही रुद्ध मार्ग अपने आप खुल जाते हैं.

    ReplyDelete
  10. आभार सरिता जी

    ReplyDelete
  11. सादर अभिवादन
    बहुत खूबसूरत प्रेरक रचना |
    बहुत खूब |
    “महात्मा गाँधी :एक महान विचारक !”

    ReplyDelete
  12. ati sundar rachna ... prerak bhi badhayi evam shubhkamnaye

    ReplyDelete
  13. वाह !!! बहुत ही बढ़िया रचना !

    ReplyDelete
  14. दुक्खों को भूलना परिश्रम कर के संभव है ... स्वयं को इतना ऊंचा उठाना होगा की दुख की परछाई भी दिखाई न दे ... फिर बस परम आनंद ही है ...
    भावपूर्ण रचना ...

    ReplyDelete
  15. बहुत सुन्दर रचना नीरज जी !

    ReplyDelete

  16. हार्दिक बधार्इ स्वीकारें, आदरणीय। सादर,

    ReplyDelete
  17. बहुत खूब ...ये पंक्तियाँ मुझे बस भा गयीं 'राग' के दो अर्थों का कितना सुंदर प्रयोग किया है इनमे आपने .....बहुत ही सुंदर
    "गुनगुनाओ कि
    गुनगुनाने से जन्मता है राग
    मिटता है राग "

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...