Wednesday 24 July 2013

दर्पण पे धूल


2212   2212    2212    22 
दर्पण जमी हो धूल तो शृंगार कैसे हो 
भूखा है जब तक आदमी तो प्यार कैसे हो 

महगाई छूना चाहती जब आसमां साहब 
निर्धन के घर अब तीज औ त्योहार कैसे हो

मतलब नहीं जब आदमी को देश से हरगिज 
तो राम जाने देश का उद्धार कैसे हो 

सब चाहते बनना शहर में जब जाके बाबू 
तुम्ही कहो खेतों में पैदावार कैसे हो 

ले चल मुझे अब दूर मुरदों के शहर से 
मुर्दा शहर में जीस्त का व्यापार कैसे हो ....
.............. नीरज कुमार नीर 

(चित्र गूगल से से साभार )

18 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर, रूप देखना हो सचमुच का, दर्पण हिय का साफ करो जी।

    ReplyDelete
  2. पढ़ लिख कर सब बन गए शहर में दफ्तर के बाबू ,
    खेतों में अनाज की अब पैदावार कैसे हो ...

    वाह सुभान अल्ला ... क्या गज़ब की बात आसानी से कह दी ...
    कमाल का शेर ... और लाजवाब गज़ल ...

    ReplyDelete
  3. कुंठा को कितने बेहतर तरीके से उभारा है .... वाह

    ReplyDelete
  4. शुक्रिया भाई ।

    ReplyDelete


  5. मंहगाई को जिद ही है अब छूने को आसमां,
    गरीबों के घर तीज और त्यौहार कैसे हो .


    मतलब नहीं है देश के आदमी को देश से,
    राम जाने इस देश का बेड़ा पार कैसे हो .


    ले चल अब मुझे दूर कहीं मुर्दों के शहर से ,
    मुर्दों के शहर में गजल का कारोबार कैसे हो.





    सुन्दर ,सटीक और सार्थक . बधाई
    सादर मदन .कभी यहाँ पर भी पधारें .
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

    ReplyDelete
  6. ले चल अब मुझे दूर कहीं मुर्दों के शहर से ,
    मुर्दों के शहर में गजल का कारोबार कैसे हो.

    कमाल का शेर और लाजवाब गज़ल,बहुत सुन्दर निरज भाई.

    ReplyDelete
  7. आपने लिखा....हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 27/07/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

    ReplyDelete
  8. सुन्दर काव्य रचना।। आपके चिठ्ठे(ब्लॉग) का अनुसरण कर रहे हैं!!

    नये लेख : जन्म दिवस : मुकेश

    आखिर किसने कराया कुतुबमीनार का निर्माण?

    ReplyDelete
  9. ले चल अब मुझे दूर कहीं मुर्दों के शहर से ,
    मुर्दों के शहर में गजल का कारोबार कैसे हो.
    ...बहुत सही ...

    ReplyDelete
  10. 'मुर्दों के शहर में गजल का कारोबार कैसे हो.'
    वाह!
    संवेदनाओं का मर जाना सभी विडम्बनाओं का मूल है, सत्य को लिख कर दर्पण की धूल जैसे साफ़ करने का अप्रतिम प्रयास किया है!
    बहुत सटीक और सुन्दर!

    ReplyDelete
  11. ले चल अब मुझे दूर कहीं मुर्दों के शहर से ,
    मुर्दों के शहर में गजल का कारोबार कैसे हो.

    वाह शानदार गजल.

    रामराम.

    ReplyDelete
  12. बहुत ही खुबसूरत रचना.........
    हर लाइन बहुत सटीक अर्थ लिए हुए ....

    ReplyDelete
  13. बहुत सटीक रचना, देश की हालत इन दिनो कुछ ज्यादा की खस्ता है

    ReplyDelete
  14. बहुत ही सुन्दर

    ReplyDelete
  15. ग़ज़ब. आखिरी शेर ने ज़बरदस्त प्रहार किया है. ऐसे ही लिखते रहें.

    ReplyDelete
  16. बहुत ही बढ़िया पहला और आखिरी शेर बहुत ही जबरदस्त !!

    ReplyDelete
  17. बहुत ही शानदार प्रस्तुति कविवर नीर साब !
    महंगाई छूना चाहती .....
    बहुत सार्थक शब्द !!

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...