हमारे जीवन मूल्य
सरेआम नीलाम हो जायेंगें
हम फिर से गुलाम हो जायेंगें ..
स्वतंत्रता का काल स्वर्णिम
तेजी से है बीत रहा
हासिल हुआ जो मुश्किल से
तेजी से है रीत रहा.
धरी रह जाएगी नैतिकता,
आदर्श सभी बेकाम हो जाएँगे .
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..
कहों ना ! जो सत्य है.
सत्य कहने से घबराते हो
सत्य अकाट्य है , अक्षत
छूपता नहीं छद्मावरण से
जो प्राचीन है , धुंधला,
गर्व उसी पर करके बार बार दुहराते हो.
टूटे हुए कलश, भंजित प्रतिमा
ध्वस्त अभिमान, लूटी स्त्रियाँ
नत सर .
ये इतिहास हैं.
ये सत्य हैं, अकाट्य , अक्षत,
गर्व करो या स्वीकारो
या उठा कर फ़ेंक आओ इन पन्नो को
अरब सागर की अतल गहराइयों में.
पर सत्य नहीं बदलेगा
सत्य नग्न होता है.
सत्य पे झूठ के आवरण
नाकाम हो जायेंगें.
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..
नैतिकता और कायरता में
पुरुषार्थ भर का अंतर है
कायरों की नैतिकता
चलती नहीं अनंतर है.
सूरज को हाथों से ढकने के यत्न
नाकाम हो जायेंगे
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..
नीरज कुमार नीर
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