Sunday 11 December 2016

दिल्ली प्रवास का दूसरा दिन और बहादुर शाह तृतीय से मुलाकात

मैं शीघ्र ही उनकी बातों से उब गया था .  जब मेरी चाय ख़तम हो गयी तो मैंने उठते हुए विदा लेने का उपक्रम किया , जिस पर मिर्जा साहब गुनगुनाने ...... तुम्हारे जाऊं जाऊं ने मेरा दम निकाला है . लेकिन मैं इससे ज्यादा उनको नहीं झेल सकता था और मुझे यह समझ आ गया था कि आगे भी ये महाशय ऐसी ही कुछ बातें करने वाले है . जब विदा लेने के लिए हाथ मिला रहा था तो मिर्जा साहब ने अपने सामने बैठे सज्जन की और ईशारा करते हुए कहा आइये आपको मिलवाते है उनसे  जो मुग़ल खानदान से आते हैं. मेरा चौंक  जाना स्वाभाविक था और मैं चौक कर सामने वाले व्यक्ति को देखने लगा.
दिल्ली में प्रवास का यह मेरा दूसरा दिन था . दोपहर तक सारा काम निबटा लेने के बाद शाम में मैं बिलकुल खाली  था और अकेला भी . होटल में बिस्तर पर  लेटकर टीवी देखते देखते मैं शीघ्र ही बोर हो गया एवं कपड़े बदल  कर निरुद्देश्य बाहर निकल आया .  कमरे की चाभी को होटल के रिसेप्शन पर जमा करने के बाद मैं बाहर  आ गया . मौसम बहुत ही सुहावना था . थोड़ी देर इधर उधर घुमने के बाद सोचा कि पुरानी दिल्ली का रुख करूं . लेकिन कोई ऑटो वाला पहले तो जाने को तैयार ही नहीं हुआ और जो एक दो तैयार भी हुए तो बहुत हुज्जत करने लगे कि कहाँ जाओगे , exact जगह बताओ , अब जब exact जगह का मुझे ही पता नहीं तो मैं भला उन्हें क्या बताऊँ. खैर जैसे तैसे एक ऑटो वाला राजी हुआ , वह भी इस शर्त पर कि वह मुझे दरिया गंज के कोने पर छोड़ देगा ,  क्योंकि उसके औटो  में गैस कम है . मैंने उसकी यह शर्त मान ली. जब खुद को ही पता नहीं हो कि जाना कहाँ है तो फिर कोने पर छोड़ दे या बीच में छोड़ दे क्या फर्क पड़ता है. दरियागंज पहुँचकर इधर  उधर घुमने के बाद मेरी चाय पीने की इच्छा होने लगी . दिल्ली गेट से थोडा ही पहले दाहिने हाथ की और एक चाय की दुकान  दिख गयी और मैं वहां चला गया . यह चाय की एक छोटी सी दूकान थी जिसमे दो या तीन टेबल ही थे. एक टेबल पर दो सज्जन पहले से ही विराजमान थे. दूसरे टेबल पर मैं बैठ गया एवं मैंने चाय का आर्डर कर दिया. दूसरे  टेबल पर बैठे दोनों व्यक्ति आपस में बातें कर रहे थे. एक व्यक्ति जिन्होंने शाल लपेटा हुआ था वे बोल रहे थे एवं उनके विपरीत बैठे दूसरे  व्यक्ति उन्हें बड़े मनोयोग से लगातार सुने जा रहे थे. अभी मेरे चाय आने में देर थी , मैं यूँ ही बैठा उन्हीं लोगों की और देख ही रहा था, और यह देखना भी यूँ इत्तेफाकन नहीं हुआ था बल्कि जब मैं चाय के इन्तेजार में बैठा था तो मैंने सुना कि शॉल वाले व्यक्ति ने एक शेर कहा .
जिक्र क्या है तिनकों का,  उड़ रहे हैं पत्थर भी
मसलिहत के झोंकों से आजकल फ़ज़ाओं में
 मुझे अपनी और देखते हुए उन्होंने मुझे देख लिया एवं अपने पास बुला लिया . मुझे भी वहां उनके पास बैठने में कोई आपत्ति नहीं थी . मैं भी वहां जाकर बैठा गया. अब वहां उस टेबल पर तीन लोग हो गए. दो वे लोग पहले से थे और एक मैं. खैर मेरा थोडा बहुत परिचय होने के बाद शॉल वाले साहब पुनः अपने धुन में रम गए .
इसी बीच मेरी चाय आ गयी . मैंने देखा कि सामने वाले व्यक्ति बिना कुछ बोले शॉल वाले व्यक्ति की हर बात पर अपनी सहमती जता रहे हैं एवं उनकी हर बात को बड़े गौर से सुन रहे हैं. लेकिन शॉल वाले साहब जो बातें कर रहे थे वह बड़ी अजीबो गरीब थी. बात चीत के दौरान पता चला कि वे आगरा के आस पास कहीं के रहने वाले थे एवं काफी पहले दिल्ली में आकर बस गए थे. उन्होंने अपना नाम मिर्जा जफ़र बेग बताया. मिर्जा साहब बता रहे थे कि जब वे बीस साल की अवस्था में दिल्ली आ गए तो एक सरदार जी ने जिनका लिपि प्रकाशन के नाम से पुस्तक प्रकाशन का काम था उनकी बड़ी मदद की . उन्होंने बताया कि कैसे उन सरदार साहब को उर्दू के सिवा कोई और भाषा आती नहीं थी और उन्हें लिखने का बड़ा शौक था और उनके उर्दू लेखन को इन्होने हिंदी में लिखा था जिसे सरदार जी ने अपने प्रकाशन से प्रकाशित किया था . लेकिन शीघ्र ही मिर्जा साहब अपने जवानी के  दिनों में खो गए एवं बताने लगे कि कैसे एक गुर्जर ने उनके कॉलेज में एक लड़की के गाल पर हाथ फेर दिया और कैसे उन्होंने उस गुर्जर लडके को एक ऐसा सपाटा मारा कि वह लड़का वहीँ गिर कर बेहोश हो गया. मिर्जा साहब पर उनके जवानी के दिन कुछ यूँ हावी थे कि वे उससे बाहर  निकलने को तैयार ही नहीं थे . सारी  लडकियाँ उनकी दीवानी थी और कॉलेज के प्रिंसिपल साहब बिना उनसे पूछे कोई भी बड़ा फैसला नहीं लिया करते थे. एक साठ  पैंसठ साल के आदमी के द्वारा ये सारी  बातें करना वह भी एक अजनबी के सामने मुझे बड़ी अजीब लग रही थी . लेकिन सामने जो सख्स बैठे थे वे उनकी बातों को बहुत ही गौर से सुन रहे थे मानो उनकी बात को अभी नोट बुक निकाल कर नोट कर लेंगे.
मिर्जा साहब की आत्म  मुग्धता जारी थी . मैं अब किसी तरह वहां से पिंड छुड़ाना चाहता था . मेरी चाय ख़तम हुई और मैं झटके से उठ खड़ा हुआ . मिर्जा साहब अपने जवानी के किस्से में इतने मशगूल एवं गर्वोन्मत्त थे  कि उन्हें मेरा उठ जाना अविश्नीय लगा. लेकिन मैं चले जाने को दृढ संकल्पित था . इस बीच सामने बैठे व्यक्ति जिन्होंने दाढ़ी रखी हुई थी चश्मा पहना हुआ था और देखने से मुसलमान प्रतीत हो रहे थे ने एक भी शब्द नहीं बोला था . मैंने चाय के पैसे देने के लिए अपनी जेब से बटुआ निकाला और पैसे निकालने लगा तो मिर्जा साहब ने कहा कि रहने दीजिये चाय के पैसे हम दे देंगे, लेकिन मैंने चाय के पैसे दुकानदार को दे दिए.
जब मैंने विदा लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो मिर्जा साहब ने कहा आइये आपको मिलवाते है उनसे जो मुग़ल खानदान से आते हैं  और उन्होंने सामने बैठे दाढ़ी वाले व्यक्ति की और इशारा किया . मैंने उनसे पूछा “ अच्छा ! आप मुग़ल हैं ? इसपर उन्होंने कन्फर्म किया कि वे बहादुर शाह जफ़र के खानदान से हैं . मुझे वे दिलचस्प लगे और मैं दुबारा बैठा गया . मिर्जा साहब को मेरा बैठना बहुत ही प्रिय लगा . उन्होंने कहा “हम भी मुग़ल है ये बादशाह खानदान से हैं हम नवाबों के खानदान से . लेकिन फिर मिर्जा साहब ने बात भटका दी और बात अपनी और खींच कर ले गए जिसका मुख्य विषय था वर्तमान समय की मोदी की राजनीति और मिर्जा साहब की राजनैतिक पँहुच .  लेकिन मेरी कोई भी दिलचस्पी अब उनकी बातों में नहीं थी और मैं दाढ़ी वाले व्यक्ति के बारे में जानने को  उत्सुक था.
मैंने मिर्जा साहब की बात की और ध्यान नहीं देते हुए दाढ़ी वाले व्यक्ति से  उनका नाम पूछा.  उन्होंने अपना नाम बताया ..... “फैज़ुद्दीन ख्वाजा मोइउद्दिन बहादुर शाह  तृतीय”
आपकी तरह मैंने भी बहादुर शाह द्वितीय  तक का ही नाम सुना था.
“अच्छा तो आप बहादुर शाह तृतीय हैं” मैंने मुस्कुराते हुए पुछा. “हाँ मेरा राज्याभिषेक १९७६ में जयपुर के राज महल में हुआ था और उसमे इंदिरा गांधी भी शामिल हुई थी “ उन्होंने बताया .  उस राज्याभिषेक में  कई राजा  महाराजा आये थे जयपुर की महारानी गायत्री देवी भी उस समारोह में मौजूद थी .
पूरी बात चीत के दौरान उन्होंने कई दिलचस्प बातें बतायी , जिसे जानना आपको भी रूचिकर लगेगा . उनके अनुसार १८५७ की लड़ाई मुग़लों ने अंग्रेजों से जीत ली थी. लड़ाई जीतने के बाद मुग़ल सैनिक रात में जब उत्सव मन रहे थे तो अंग्रेजी सेना ने उनको घेर लिया और उसमें बहुत सारे सैनिक मारे गए .  इस तरह अंग्रेजों ने धोखे से मुग़लों को हरा दिया एवं बहादुर शाह जफ़र कैद कर लिए गए.  १८५७ की लड़ाई की कहानी तो हम सभी जानती हिन् हैं , कभी न कभी किताबों में हम सब ने पढ़ी ही है . मेरी उत्सुकता यह जानने में थी कि उसके बाद क्या हुआ . उन्होंने बताया कि १८५७ के बाद उनके पूर्वज कर्नाटक  के धारवाड़ चले गए और वहीँ रहने लगे. उन्हें आज़ादी के बाद पेंशन भी मिलती रहती , जिसे बाद में सरकार ने बंद कर दिया था.
“आप क्या करते हैं “ मैंने उत्सुकता वश पूछ ही लिया , दरअसल मेरे मन में था कि जब ये लोग धारवाड़ चले गए तो वहां की जमीन जायदाद अभी भी काफी होगी.
“मैं पत्रकार हूँ “ उन्होंने कहा .
“किस अख़बार में ?“
“नहीं  मैं स्वतंत्र पत्रकार हूँ और यहाँ एक भाड़े के कमरे में रहता हूँ”
इस बीच में जब भी मिर्जा साहब ने बात चीत को अपनी ओर मोड़ने का प्रयास किया मैंने उनकी बात को तवज्जो नहीं देते हुए अपना ध्यान इस मुग़ल खानदान के चश्मो चराग की और ही रखा .
उन्होंने बताया कि जब भारत आज़ाद हो रहा था तो अंग्रेजों ने इनके खानदान के ज़हीरुद्दीन एवं ख्वाज़ा मोइउद्दिन को दिल्ली की सत्ता सौंप देने के लिए बुलाया पर कांग्रेस के नेताओं के द्वारा उन लोगों को दिल्ली नहीं जाने की सलाह की दी गयी और इस प्रकार वे दिल्ली की सत्ता वापस पाने से वंचित रह गए.  इस प्रकार बहादुर शाह तृतीय को अनेक तरह की शिकायतें थी और अपनी शिकायतों को वे बड़ी गंभीरता से प्रकट कर रहे थे. उन्होंने बताया कि इंदिरा गाँधी से उनके अच्छे सम्बन्ध थे एवं इंदिरा गाँधी नै उनको खान की उपाधि प्रदान की थी .
मेरे पास उनकी बात से असहमत होने की कोई वजह नहीं थी और उनकी बात से सहमत होने का कोई आधार भी नहीं , पर कुल मिलाकर बहादुर शाह तृतीय अत्यंत दिलचस्प व्यक्ति लगे ..  
इन सब बातचीत के बीच रात के साढ़े आठ बज चुके थे और अब मुझे होटल के लिए निकलना भी जरूरी था . मैंने फिर से विदा ली और वापस अपने होटल आ गया .
#neeraj_kumar_neer 

Monday 7 November 2016

पूर्ण मनोकामना का पर्व है छठ

सूर्य की उपासना का पर्व है छठ 
प्रकृति की आराधना का पर्व है छठ 

कठोर तप , तन और मन की शुचिता  
सबसे प्रेम और भाव की शुद्धता 
लोक आस्था का महान उत्कर्ष 
श्रद्धा और भावना का पर्व है छठ 

उगते,  डूबते दोनों को नमन करें 
मातृ शक्ति को कृतज्ञता अर्पण करें 
राजा और रंक अंतर नहीं कोई 
ईश्वर की साधना का पर्व है छठ 

बूढ़े और जवान सभी में उत्साह 
परिवार जनों से मिलने की चाह 
सूप, दौरा, अर्घ्य , ठेकुआं की खुश्बू 
पूर्ण मनोकामना का पर्व है छठ 
नीरज कुमार नीर / 3 .11 .2016 

Wednesday 24 August 2016

भेड़िये और हिरण के छौने

सहिष्णुता के सबसे बड़े पैरोकार डाल देते हैं नमक अपने विरोधियों की लाशों पर ....... चमक उठती हैं उनकी आँखे जब जंगल के भीतर रेत दी जाती है गर्दनें लेवी की खातिर .... और जो असहिष्णु हैं अपने काम को देते हैं सरंजाम बीच चौराहे पर ताकि सनद रहे..... छल प्रपंच और सुविधा के अनुसार रचे गए इन छद्म विचारों के खुरदरे पाटों के बीच पीसती है मानवता माँगती है भीख मंदिर, मस्जिद, गिरिजा के चौखटों पर और लहूलुहान नजर आती है लाल झंडे के नीचे..... भेड़ियों के झगड़े में हमेशा नुकसान में रहते हैं हिरण के छौने ही। ------ #नीरज कुमार नीर / 23.05.2015
#neeraj
#intolerance #asahishnuta #intolerance #mandir #masjid Hindi_poem #politics #rajniti #jungle #democracy

Wednesday 10 August 2016

शहर मे आदिवासी

(ककसाड के जुलाई अंक में प्रकाशित) 
----------------------------------------
देख कर साँप,
आदमी बोला,
बाप रे बाप !
अब तो शहर में भी
आ गए साँप।

साँप सकपकाया,
फिर अड़ा
और तन कर हो गया खड़ा।

फन फैलाकर
ली आदमी की माप।
आदमी अंदर तक
गया काँप ।

आँखेँ मिलाकर बोला साँप :
मैं शहर में नहीं आया
जंगल मे आ गयें हैं आप ।
आप जहां खड़े हैं
वहाँ था
मोटा बरगद का पेड़ ।
उसके कोटर मे रहता था
मेरा बाप ।

आपका शहर जंगल को खा गया ।
आपको लगता है
साँप शहर में आ गया ।
..............................
#नीरज
#neeraj #adiwasi @tribal #saanp #admni #shahar #बाप

Wednesday 8 June 2016

नदी और समंदर

नदी को लगता है
कितना आसान है
समंदर होना
अपनी गहराइयों के साथ
झूलते रहना मौजों पर

न शैलों से टकराना
न शूलों से गुजरना
न पर्वतों की कठोर छातियों को चीरकर
रास्ता बनाना

पर नदी नहीं जानती है
समंदर की बेचैनी को
उसकी तड़प और उसकी प्यास को
कितना मुश्किल होता है
खारेपन के साथ एक पल भी जीना

समंदर हमेशा रहता है
प्यासा
और भटकता फिरता है
होकर सवार अपनी लहरों पर
भागता रहता है
हर वक्त किनारों की ओर
वह करता रहता है
प्रतीक्षा
एक एक बूंद मीठे जल की
समंदर होना भी सरल नहीं है

स्त्री और पुरुष मिलकर
बनाते हैं प्रकृति को
गम्य
.... #NEERAJ_ KUMAR_NEER
#नीरज कुमार नीर
#नदी #समंदर #स्त्री #पुरुष #love

Sunday 3 April 2016

प्रजातन्त्र के खेल


राजा ने कहा :
जनता को विकास चाहिए
आओ खेलें
विकास-विकास

पर सरकार ! कुछ दिनों के बाद
जनता मांगेगी
विकास का प्रमाण ...

तो फिर खेलेंगे
धर्म–धर्म / मजहब-मजहब
जनता मजहब की भूखी है

पर सरकार! कुछ दिनों के बाद
जनता मांगेगी
मंदिर/मस्जिद.........

तो फिर खेलेंगे
देश-देश
जनता देश-भक्ति की भूखी है

पर सरकार ! कुछ दिनों के बाद
जनता मांगेगी
सीमा पर मरने वाले सैनिकों का हिसाब....

तो फिर खेलेंगे
जाति-जाति
जनता जाति की भूखी है

पर सरकार ! जाति से पेट नहीं भरता
जनता को विकास चाहिए
तो फिर से खेलेंगे
विकास–विकास ......
#नीरज कुमार नीर  / 20,12,2015
#Neeraj_kumar_neer 
#prajatantra #प्रजातन्त्र  #मंदिर #मस्जिद #धर्म #हिन्दी_कविता #hindi_poem #prajatantra #dharm #desh #janta
चित्र गूगल से साभार 

Friday 25 March 2016

कुछ कहमुकरियाँ

मुझको सबसे प्रिय हमेशा
इसमे नहीं कोई अंदेशा
इसकी शक्ति को लगे न ठेस
का सखी साजन ? ना सखी देश

तन  छूये मेरे नरम नरम
कभी ठंढा और कभी गरम
गाये हरदम बासंती  धुन
का सखी साजन? ना सखी फागुन

साथ मेरे ये चलता जाए
नया नया में बहुत सताये
संग इसके जीवन सुभीता
का सखी साजन ? ना सखी जूता

कैसे कैसे बात बनाए
कोशिश करे मुझे समझाये
एक पल को भी ले ना चैन
का सखी साजन ? ना  सखी सेल्समैन

मुझे मुआ ये खूब सताये
फिर भी मेरे जी को भाए
इसके कारण भींगी चोली
का सखी साजन? ना सखी होली

कई दिवस से वह नहीं आया
सुबह सुबह में जी घबराया
सूना लगे उस बिन संसार
का सखी साजन? ना सखी अखबार

लंबा थूथन पतली काया
जब से जालिम घर में आया
भिंगा रहा दूर से सारी
का सखी साजन ? ना सखी पिचकारी
#नीरज कुमार नीर 
#neeraj_kumar_neer 
#kahmukariya #कहमुकरियाँ #falgun #pichkari #akhbar #salesman #desh #देश #hindi_poem

Thursday 17 March 2016

सुगना उदास है

यूं तो वजह नहीं  कुछ खास है
पर सुगना  बहुत उदास है

पत्नी के कानों में और
गेंहू के पौधों पर बाली नहीं है
होठों पर पपड़ी पड़ी है ....
लाली नहीं है
रूठती तो है
पर जिद करे .....  ऐसी घरवाली नहीं है
पर सुगना का भी तो फर्ज़ है
लेकिन क्या करे, उस पर तो कर्ज है
उसे अपनी चिंता नहीं है
पर जानवर को क्या खिलाएगा
सूख चुंकी  हर तरफ घास है
यूं तो वजह नहीं  कुछ खास है .......... पर सुगना ...........

सुगना बुढ़ौती का बेटा है
घर का अकेला ज़िम्मेवार है
अम्मा को सुझाई नहीं देता है
बाबा बीमार है
बेटा पढ़ने मे तेज है
पर क्या करे
सरकारी स्कूल का मास्टर फरार है
मास्टर जब आता है
बेटा खिचड़ी खाता है
और एक एकम एक गाता है
वह एक से दो नहीं पहुंचा है
और न पहुँचने की आस है  .......
यूं तो वजह नहीं  कुछ खास है  .......... पर सुगना.....

वह परेशान है
मन भी खिन्न है
पर वह बेवजह दंगा नहीं करता है
अपनी भारत माँ को सरेआम नंगा नहीं करता है
वह बेरोजगार है
पर गद्दार नहीं है
वह भूखा रहकर भी वन्देमातरम गाता है
वह जानता है
उसकी स्वतन्त्रता तभी तक है
जब तक राष्ट्र जिंदा है
वह पढे लिखों की नादानियों पर शर्मिंदा है
वह एक जिंदा आदमी है और
जिंदा यह  एहसास है
यूं तो वजह नहीं  कुछ खास है   .......... पर सुगना......
..... नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer

#jnu #kanhaiya #vandematram #master #patni #janwar #gharwali #hindi_poem #swatantrata #rashtra #independenceday

Tuesday 2 February 2016

मिलन की बेला :गीत

चंचल नयना स्मित मुख ललाम कपोल कचनार सखी रे
कुंतल गुलमोहर की छाँव ,  मृदु अधर रतनार सखी रे ..

जब विहँसे अवदात कौमुदी
मुकुलित कुमुदों के आँगन में
तुम मुझसे मिलने आना प्रिय
उज्ज्वल तारों के प्रांगण में
मैं वहाँ मिलूंगा लेकर बाहों का गलहार सखी रे

पीली साड़ी चूनर धानी
समीरण सुवासित सी आना
ऊसर उर के खालीपन को
प्रेम पीयूष से भर जाना
सुर लोक की अप्सरा सी मुस्काती गुलनार सखी रे

आँखों से ही बातें होंगी
शब्दों के सेतू भंग रहे
उन्माद भरे जीवन पल में
बस प्रेम रहे आनंद रहे
खिल उठेगा रूप करूँ जब होठों से शृंगार सखी रे

पत्थर गाएँगे गीत मधुर
तरुवर संगीत सुनाएँगे
ठिठक रुक जाएगी सरिता
धरा और नभ मुस्कायेंगे
बदल जाएगा सम्पूर्ण जगत का व्यवहार सखी रे

हम गीत प्रेम के गाएँगे
श्याम भँवर  के जग जाने तक
पूर्व देश में दूर क्षितिज पर
स्वर्ण कलश के उग आने तक
गीत है समर्पित तुमको ले जाओ उपहार सखी रे

चंचल नयना स्मित मुख ललाम कपोल कचनार सखी रे
कुंतल गुलमोहर की छाँव ,  मृदु अधर रतनार सखी रे ..
.............   #neeraj_kumar_neer  
......... #नीरज कुमार नीर ..........
#love #geet #valentine 

Monday 1 February 2016

इश्क़ में नुकसान भी नफा ही लगे

इश्क़ में नुकसान भी नफा ही लगे
बेवफाई  वो  करें  वफा  ही लगे

पास कितने दिल के रहता है वो मेरे
फिर भी जाने क्यूँ जुदा जुदा ही लगे

अच्छे जब उन्हें रकीब लगने लगे
बात मेरी तब से तो खता ही लगे

जी रहा हूँ क्योंकि मौत आई नहीं
बाद तेरे जीस्त   बेमजा ही लगे

रहता है खुश उसकी मैं सुनूँ गर सदा
जो कहूँ अपनी उसे बुरा ही लगे

और आखिर में किसानों के लिए :

खेत सूखे औ अनाज घर में नहीं
जिंदगी से बेहतर कजा ही लगे

नीरज कुमार नीर
#Neeraj_Kumar_Neer

भूखा है जब तक आदमी तो प्यार कैसे हो

2212   2212    2212    22
दर्पण जमी हो धूल...... तो शृंगार कैसे हो
भूखा है जब तक आदमी तो प्यार कैसे हो

महगाई छूना चाहती जब आसमां साहब
निर्धन के घर अब तीज औ त्योहार कैसे हो

मतलब नहीं जब आदमी को देश से हरगिज
तो राम जाने .......देश का उद्धार कैसे हो

सब चाहते बनना शहर में जब जाके बाबू
तुम्ही कहो .......खेतों में पैदावार कैसे हो

ले चल मुझे अब दूर मुरदों के शहर से
मुर्दा शहर में जीस्त  का व्यापार कैसे हो ....
.............. नीरज कुमार नीर
#Neeraj_Kumar_Neer

Sunday 24 January 2016

नाम अपने हुस्न के मेरी जवानी लिख ले

2122/ 2122/ 2122/ 22
शाम लिख ले सुबह लिख ले ज़िंदगानी लिख ले
नाम अपने हुस्न के मेरी जवानी लिख ले ।

कब्ल तुहमत   बेवफ़ाई   की लगाने   से सुन
नाम मेरा  है वफा की   तर्जुमानी   लिख ले ।

जो बनाना  चाहता है  खुशनुमा  दुनया को
अपने होंठो पे मसर्रत की कहानी  लिख ले ।

मंहगाई बढ़ रही है  रात औ दिन  साहब
वादे अच्छे  दिन के निकले  लंतरानी  लिख ले  ।

लाल होगी यह जमी गर   आदमी  के   खूँ से
रह न जाए गा अंबर भी   आसमानी  लिख ले ।

रात का सागर अगर है गहरा तो यह तय है
कल किनारों पर न होगी सरगरानी लिख ले ।

रह नहीं सकते यहाँ तुम संग इन्सानो के
संग उसके घर पे रहते आग पानी लिख ले  ॥

और अंत में :
कर गया जो फेल दसवीं की परीक्षा पप्पू
अब करेगा गाँव की अपने प्रधानी लिख ले  ।
......... नीरज कुमार नीर
#Neeraj_Kumar_Neer

Friday 15 January 2016

नया साल

एक साल खत्म हुआ
नया साल आ रहा है
समय कितनी जल्दी बीत जाता है
देखते देखते बीत गए
कितने बरस
गहरे उच्छ्वास के साथ मन ने कहा
समय सुन रहा था मुझे
उसने मुस्कुरा कर कहा
बीत तो तुम रहे हो मेरे बच्चे
मैं तो वहीं का वहीं हूँ
अनंत काल से
आगे भी वहीं रहूँगा
तुम्हारे पुनः पुनः पुनरागमन के दौरान
तुम्हारे निर्वाण तक
जब मैं हो जाऊँगा
अर्थहीन
तुम्हारे लिए।
नीरज कुमार नीर
#Neeraj_Kumar_Neer
#new_year

Wednesday 6 January 2016

मैं खुश हूँ कि मैं जो हूँ

मैं एक काफिर हूँ
हां! तुम्हारे लिए मैं एक काफिर हूँ,
यद्यपि कि मैं मानता नहीं किसी को
सिवा एक ईश्वर के
मैने कभी सर नहीं झुकाया
किसी बुत के सामने
मैं नहीं मानता बराबर किसी को
उस ईश्वर के
मैंने कभी झूठ नहीं बोला
हिंसा नहीं की
चौबीसों घंटे ईश्वर की अराधना करता हूँ
मानव तो मानव
करता हूँ जीव मात्र का सम्मान ।
फिर भी मैं काफिर हूँ
हाँ तुम्हारे लिए
फिर भी मैं काफिर हूँ
तुम्हें अधिकार है
मेरा सर कलम करने  की
मेरी संपत्ति  लूट लेने की
और न जाने क्या क्या
क्योंकि मैं काफिर हूँ
मैं जानता हूँ
मैं सत्य की राह पर हूँ
मैं भटक नहीं सकता
पर तुम नहीं मानते
तुम्हें नहीं मानने के लिए कहा गया है
तुम नहीं मानोगे जब तक
मैं तुम्हारी बोली न बोलने लगूँ
तुम नहीं मानोगे जब तक
मैं तुम्हारा रूप न धर लूँ
जो मेरा पुण्य है
जो मेरा धर्म है
वह अर्थहीन है तुम्हारी दृष्टि में
क्योंकि मैं काफिर हूँ
हालांकि मैं खुश हूँ कि मैं जो  हूँ
..............  #नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer
#kafir #काफ़िर #Hindi_poem #qafir 

Tuesday 5 January 2016

पास उसके दर्द की कोई दवा नहीं है

वो हमसफर तो है पर हमनवा नहीं है
वो धूप छांव है ताजा हवा नहीं है.... ।
वो फूल सा दिखाई देता है मगर ...
पास उसके दर्द की कोई दवा नहीं है ।
.... #neeraj_kumar_neer  
नीरज कुमार नीर 
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