Wednesday, 24 August 2016

भेड़िये और हिरण के छौने

सहिष्णुता के सबसे बड़े पैरोकार डाल देते हैं नमक अपने विरोधियों की लाशों पर ....... चमक उठती हैं उनकी आँखे जब जंगल के भीतर रेत दी जाती है गर्दनें लेवी की खातिर .... और जो असहिष्णु हैं अपने काम को देते हैं सरंजाम बीच चौराहे पर ताकि सनद रहे..... छल प्रपंच और सुविधा के अनुसार रचे गए इन छद्म विचारों के खुरदरे पाटों के बीच पीसती है मानवता माँगती है भीख मंदिर, मस्जिद, गिरिजा के चौखटों पर और लहूलुहान नजर आती है लाल झंडे के नीचे..... भेड़ियों के झगड़े में हमेशा नुकसान में रहते हैं हिरण के छौने ही। ------ #नीरज कुमार नीर / 23.05.2015
#neeraj
#intolerance #asahishnuta #intolerance #mandir #masjid Hindi_poem #politics #rajniti #jungle #democracy

Wednesday, 10 August 2016

शहर मे आदिवासी

(ककसाड के जुलाई अंक में प्रकाशित) 
----------------------------------------
देख कर साँप,
आदमी बोला,
बाप रे बाप !
अब तो शहर में भी
आ गए साँप।

साँप सकपकाया,
फिर अड़ा
और तन कर हो गया खड़ा।

फन फैलाकर
ली आदमी की माप।
आदमी अंदर तक
गया काँप ।

आँखेँ मिलाकर बोला साँप :
मैं शहर में नहीं आया
जंगल मे आ गयें हैं आप ।
आप जहां खड़े हैं
वहाँ था
मोटा बरगद का पेड़ ।
उसके कोटर मे रहता था
मेरा बाप ।

आपका शहर जंगल को खा गया ।
आपको लगता है
साँप शहर में आ गया ।
..............................
#नीरज
#neeraj #adiwasi @tribal #saanp #admni #shahar #बाप

Wednesday, 8 June 2016

नदी और समंदर

नदी को लगता है
कितना आसान है
समंदर होना
अपनी गहराइयों के साथ
झूलते रहना मौजों पर

न शैलों से टकराना
न शूलों से गुजरना
न पर्वतों की कठोर छातियों को चीरकर
रास्ता बनाना

पर नदी नहीं जानती है
समंदर की बेचैनी को
उसकी तड़प और उसकी प्यास को
कितना मुश्किल होता है
खारेपन के साथ एक पल भी जीना

समंदर हमेशा रहता है
प्यासा
और भटकता फिरता है
होकर सवार अपनी लहरों पर
भागता रहता है
हर वक्त किनारों की ओर
वह करता रहता है
प्रतीक्षा
एक एक बूंद मीठे जल की
समंदर होना भी सरल नहीं है

स्त्री और पुरुष मिलकर
बनाते हैं प्रकृति को
गम्य
.... #NEERAJ_ KUMAR_NEER
#नीरज कुमार नीर
#नदी #समंदर #स्त्री #पुरुष #love

Sunday, 3 April 2016

प्रजातन्त्र के खेल


राजा ने कहा :
जनता को विकास चाहिए
आओ खेलें
विकास-विकास

पर सरकार ! कुछ दिनों के बाद
जनता मांगेगी
विकास का प्रमाण ...

तो फिर खेलेंगे
धर्म–धर्म / मजहब-मजहब
जनता मजहब की भूखी है

पर सरकार! कुछ दिनों के बाद
जनता मांगेगी
मंदिर/मस्जिद.........

तो फिर खेलेंगे
देश-देश
जनता देश-भक्ति की भूखी है

पर सरकार ! कुछ दिनों के बाद
जनता मांगेगी
सीमा पर मरने वाले सैनिकों का हिसाब....

तो फिर खेलेंगे
जाति-जाति
जनता जाति की भूखी है

पर सरकार ! जाति से पेट नहीं भरता
जनता को विकास चाहिए
तो फिर से खेलेंगे
विकास–विकास ......
#नीरज कुमार नीर  / 20,12,2015
#Neeraj_kumar_neer 
#prajatantra #प्रजातन्त्र  #मंदिर #मस्जिद #धर्म #हिन्दी_कविता #hindi_poem #prajatantra #dharm #desh #janta
चित्र गूगल से साभार 

Friday, 25 March 2016

कुछ कहमुकरियाँ

मुझको सबसे प्रिय हमेशा
इसमे नहीं कोई अंदेशा
इसकी शक्ति को लगे न ठेस
का सखी साजन ? ना सखी देश

तन  छूये मेरे नरम नरम
कभी ठंढा और कभी गरम
गाये हरदम बासंती  धुन
का सखी साजन? ना सखी फागुन

साथ मेरे ये चलता जाए
नया नया में बहुत सताये
संग इसके जीवन सुभीता
का सखी साजन ? ना सखी जूता

कैसे कैसे बात बनाए
कोशिश करे मुझे समझाये
एक पल को भी ले ना चैन
का सखी साजन ? ना  सखी सेल्समैन

मुझे मुआ ये खूब सताये
फिर भी मेरे जी को भाए
इसके कारण भींगी चोली
का सखी साजन? ना सखी होली

कई दिवस से वह नहीं आया
सुबह सुबह में जी घबराया
सूना लगे उस बिन संसार
का सखी साजन? ना सखी अखबार

लंबा थूथन पतली काया
जब से जालिम घर में आया
भिंगा रहा दूर से सारी
का सखी साजन ? ना सखी पिचकारी
#नीरज कुमार नीर 
#neeraj_kumar_neer 
#kahmukariya #कहमुकरियाँ #falgun #pichkari #akhbar #salesman #desh #देश #hindi_poem

Thursday, 17 March 2016

सुगना उदास है

यूं तो वजह नहीं  कुछ खास है
पर सुगना  बहुत उदास है

पत्नी के कानों में और
गेंहू के पौधों पर बाली नहीं है
होठों पर पपड़ी पड़ी है ....
लाली नहीं है
रूठती तो है
पर जिद करे .....  ऐसी घरवाली नहीं है
पर सुगना का भी तो फर्ज़ है
लेकिन क्या करे, उस पर तो कर्ज है
उसे अपनी चिंता नहीं है
पर जानवर को क्या खिलाएगा
सूख चुंकी  हर तरफ घास है
यूं तो वजह नहीं  कुछ खास है .......... पर सुगना ...........

सुगना बुढ़ौती का बेटा है
घर का अकेला ज़िम्मेवार है
अम्मा को सुझाई नहीं देता है
बाबा बीमार है
बेटा पढ़ने मे तेज है
पर क्या करे
सरकारी स्कूल का मास्टर फरार है
मास्टर जब आता है
बेटा खिचड़ी खाता है
और एक एकम एक गाता है
वह एक से दो नहीं पहुंचा है
और न पहुँचने की आस है  .......
यूं तो वजह नहीं  कुछ खास है  .......... पर सुगना.....

वह परेशान है
मन भी खिन्न है
पर वह बेवजह दंगा नहीं करता है
अपनी भारत माँ को सरेआम नंगा नहीं करता है
वह बेरोजगार है
पर गद्दार नहीं है
वह भूखा रहकर भी वन्देमातरम गाता है
वह जानता है
उसकी स्वतन्त्रता तभी तक है
जब तक राष्ट्र जिंदा है
वह पढे लिखों की नादानियों पर शर्मिंदा है
वह एक जिंदा आदमी है और
जिंदा यह  एहसास है
यूं तो वजह नहीं  कुछ खास है   .......... पर सुगना......
..... नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer

#jnu #kanhaiya #vandematram #master #patni #janwar #gharwali #hindi_poem #swatantrata #rashtra #independenceday

Tuesday, 2 February 2016

मिलन की बेला :गीत

चंचल नयना स्मित मुख ललाम कपोल कचनार सखी रे
कुंतल गुलमोहर की छाँव ,  मृदु अधर रतनार सखी रे ..

जब विहँसे अवदात कौमुदी
मुकुलित कुमुदों के आँगन में
तुम मुझसे मिलने आना प्रिय
उज्ज्वल तारों के प्रांगण में
मैं वहाँ मिलूंगा लेकर बाहों का गलहार सखी रे

पीली साड़ी चूनर धानी
समीरण सुवासित सी आना
ऊसर उर के खालीपन को
प्रेम पीयूष से भर जाना
सुर लोक की अप्सरा सी मुस्काती गुलनार सखी रे

आँखों से ही बातें होंगी
शब्दों के सेतू भंग रहे
उन्माद भरे जीवन पल में
बस प्रेम रहे आनंद रहे
खिल उठेगा रूप करूँ जब होठों से शृंगार सखी रे

पत्थर गाएँगे गीत मधुर
तरुवर संगीत सुनाएँगे
ठिठक रुक जाएगी सरिता
धरा और नभ मुस्कायेंगे
बदल जाएगा सम्पूर्ण जगत का व्यवहार सखी रे

हम गीत प्रेम के गाएँगे
श्याम भँवर  के जग जाने तक
पूर्व देश में दूर क्षितिज पर
स्वर्ण कलश के उग आने तक
गीत है समर्पित तुमको ले जाओ उपहार सखी रे

चंचल नयना स्मित मुख ललाम कपोल कचनार सखी रे
कुंतल गुलमोहर की छाँव ,  मृदु अधर रतनार सखी रे ..
.............   #neeraj_kumar_neer  
......... #नीरज कुमार नीर ..........
#love #geet #valentine 

Monday, 1 February 2016

इश्क़ में नुकसान भी नफा ही लगे

इश्क़ में नुकसान भी नफा ही लगे
बेवफाई  वो  करें  वफा  ही लगे

पास कितने दिल के रहता है वो मेरे
फिर भी जाने क्यूँ जुदा जुदा ही लगे

अच्छे जब उन्हें रकीब लगने लगे
बात मेरी तब से तो खता ही लगे

जी रहा हूँ क्योंकि मौत आई नहीं
बाद तेरे जीस्त   बेमजा ही लगे

रहता है खुश उसकी मैं सुनूँ गर सदा
जो कहूँ अपनी उसे बुरा ही लगे

और आखिर में किसानों के लिए :

खेत सूखे औ अनाज घर में नहीं
जिंदगी से बेहतर कजा ही लगे

नीरज कुमार नीर
#Neeraj_Kumar_Neer

भूखा है जब तक आदमी तो प्यार कैसे हो

2212   2212    2212    22
दर्पण जमी हो धूल...... तो शृंगार कैसे हो
भूखा है जब तक आदमी तो प्यार कैसे हो

महगाई छूना चाहती जब आसमां साहब
निर्धन के घर अब तीज औ त्योहार कैसे हो

मतलब नहीं जब आदमी को देश से हरगिज
तो राम जाने .......देश का उद्धार कैसे हो

सब चाहते बनना शहर में जब जाके बाबू
तुम्ही कहो .......खेतों में पैदावार कैसे हो

ले चल मुझे अब दूर मुरदों के शहर से
मुर्दा शहर में जीस्त  का व्यापार कैसे हो ....
.............. नीरज कुमार नीर
#Neeraj_Kumar_Neer

Sunday, 24 January 2016

नाम अपने हुस्न के मेरी जवानी लिख ले

2122/ 2122/ 2122/ 22
शाम लिख ले सुबह लिख ले ज़िंदगानी लिख ले
नाम अपने हुस्न के मेरी जवानी लिख ले ।

कब्ल तुहमत   बेवफ़ाई   की लगाने   से सुन
नाम मेरा  है वफा की   तर्जुमानी   लिख ले ।

जो बनाना  चाहता है  खुशनुमा  दुनया को
अपने होंठो पे मसर्रत की कहानी  लिख ले ।

मंहगाई बढ़ रही है  रात औ दिन  साहब
वादे अच्छे  दिन के निकले  लंतरानी  लिख ले  ।

लाल होगी यह जमी गर   आदमी  के   खूँ से
रह न जाए गा अंबर भी   आसमानी  लिख ले ।

रात का सागर अगर है गहरा तो यह तय है
कल किनारों पर न होगी सरगरानी लिख ले ।

रह नहीं सकते यहाँ तुम संग इन्सानो के
संग उसके घर पे रहते आग पानी लिख ले  ॥

और अंत में :
कर गया जो फेल दसवीं की परीक्षा पप्पू
अब करेगा गाँव की अपने प्रधानी लिख ले  ।
......... नीरज कुमार नीर
#Neeraj_Kumar_Neer

Friday, 15 January 2016

नया साल

एक साल खत्म हुआ
नया साल आ रहा है
समय कितनी जल्दी बीत जाता है
देखते देखते बीत गए
कितने बरस
गहरे उच्छ्वास के साथ मन ने कहा
समय सुन रहा था मुझे
उसने मुस्कुरा कर कहा
बीत तो तुम रहे हो मेरे बच्चे
मैं तो वहीं का वहीं हूँ
अनंत काल से
आगे भी वहीं रहूँगा
तुम्हारे पुनः पुनः पुनरागमन के दौरान
तुम्हारे निर्वाण तक
जब मैं हो जाऊँगा
अर्थहीन
तुम्हारे लिए।
नीरज कुमार नीर
#Neeraj_Kumar_Neer
#new_year

Wednesday, 6 January 2016

मैं खुश हूँ कि मैं जो हूँ

मैं एक काफिर हूँ
हां! तुम्हारे लिए मैं एक काफिर हूँ,
यद्यपि कि मैं मानता नहीं किसी को
सिवा एक ईश्वर के
मैने कभी सर नहीं झुकाया
किसी बुत के सामने
मैं नहीं मानता बराबर किसी को
उस ईश्वर के
मैंने कभी झूठ नहीं बोला
हिंसा नहीं की
चौबीसों घंटे ईश्वर की अराधना करता हूँ
मानव तो मानव
करता हूँ जीव मात्र का सम्मान ।
फिर भी मैं काफिर हूँ
हाँ तुम्हारे लिए
फिर भी मैं काफिर हूँ
तुम्हें अधिकार है
मेरा सर कलम करने  की
मेरी संपत्ति  लूट लेने की
और न जाने क्या क्या
क्योंकि मैं काफिर हूँ
मैं जानता हूँ
मैं सत्य की राह पर हूँ
मैं भटक नहीं सकता
पर तुम नहीं मानते
तुम्हें नहीं मानने के लिए कहा गया है
तुम नहीं मानोगे जब तक
मैं तुम्हारी बोली न बोलने लगूँ
तुम नहीं मानोगे जब तक
मैं तुम्हारा रूप न धर लूँ
जो मेरा पुण्य है
जो मेरा धर्म है
वह अर्थहीन है तुम्हारी दृष्टि में
क्योंकि मैं काफिर हूँ
हालांकि मैं खुश हूँ कि मैं जो  हूँ
..............  #नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer
#kafir #काफ़िर #Hindi_poem #qafir 

Tuesday, 5 January 2016

पास उसके दर्द की कोई दवा नहीं है

वो हमसफर तो है पर हमनवा नहीं है
वो धूप छांव है ताजा हवा नहीं है.... ।
वो फूल सा दिखाई देता है मगर ...
पास उसके दर्द की कोई दवा नहीं है ।
.... #neeraj_kumar_neer  
नीरज कुमार नीर 

Sunday, 27 December 2015

मैं परिंदा हूँ मेरा ईमान न पूछो : गजल

मैं परिंदा हूँ ..... ... मिरा ईमान न पूछो
क्या हूँ, हिन्दू या कि मुस्सलमान न पूछो।

चर्च, मंदर, मस्जिदें ....सब एक बराबर
रहता किसमे है मिरा भगवान न पूछो.

मजहबी उन्माद में जो मर गया वो था
एक जिंदा आदमी , पहचान न पूछो ।

पीठ में घोपा हुआ है नफरती खंजर
रोता क्यों है अपना हिंदुस्तान न पूछो ।

आलमे बेचैनियाँ हर सिम्त है फैली
हर गली हरसू क्यों है वीरान न पूछो ।

खूब काटी है फसल अहले सियासत ने
खाद बन, किसने गँवाईं जान न पूछो ।

भाई मारा जाता है जब, भाई के हाथों
होती कितनी ये जमीं हैरान न पूछो ।
...... नीरज कुमार नीर .............
#neeraj_kumar_neer
#gazal  #hindu #hindustan #bhagwan 

Saturday, 19 December 2015

क्या आपका बच्चा पढ़ता नहीं है ...... ?????

क्या आपका बच्चा पढ़ता नहीं है ...... ?????
निराश न हों ...
....
......
....
उसे बलात्कारी बनाइये ,
खूंखार बलात्कारी ...........
स्त्री के योनि में सरिया घुसा कर
फाड़ देने वाला बलात्कारी ..............
स्तनों को काट लेने वाला बलात्कारी ........
बलात्कार की घटना के बाद..............
हजारों की संख्या में दीये और कैंडल जले ,
ऐसा बलात्कारी ,
वीभत्स बलात्कार ......
सुनने वाले की रूह काँप जाये ,
ऐसा बलात्कारी ......
फिर तीन वर्षों के सुधार कार्यक्रम के बाद
उसे सरकार देगी एक लाख रुपए और
दर्जी की दुकान .....
सरकार , न्याय व्यवस्था, सामाजिक संस्थाएं सब उसी के लिए तो है .....
तो निराश न हों
.... नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer 

Saturday, 12 December 2015

दिसंबर की धूप

दिसंबर की ठंढ
समा जाती है नसों के भीतर...
और बहती है लहू के साथ साथ......
पूरे शरीर को भर लेती है
अपने आगोश में .....
जम जाते हैं वक्त के साये भी
बेहिस हो जाती है हर शय
हरसू गूँजती है
ठंडी हवा की साँय साँय ....
ऐसे में तुम याद आती हो
बारहा .......
आ जाओ न तुम
लेकर अपने आगोश में
अधरों से छूकर
भर दो  उष्णीयता से
रोम रोम खिल जाए
पीले सरसो के फूल की तरह
आँखों में उतर आई ओस की बूंदे
हो जाए उड़नछू
सच , फिर कहीं रह न जाये बाकी
नामो निशां ढंढ की
आ जाओ न तुम
दिसंबर की धूप की तरह
............ neeraj kumar neer
#neeraj_kumar_neer 

Tuesday, 8 December 2015

डाकू बैठे गली मुहल्ले

जंगलों और पर्वतों के
गीत गाना चाहता हूँ ।

गाछ, लता, हरियाये , पात
महुआ, सखुआ, नीम, पलाश
ये है मेरी धड़कनों में
तुम्हें सुनाना चाहता हूँ।

जंगलों और पर्वतों के
गीत गाना चाहता हूँ

ताल-तलैया घाट गहरे
किन्तु खुशियों पर पहरे
डाकू बैठे गली मुहल्ले
तुम्हें बताना चाहता हूँ।

जंगलों और पर्वतों के
गीत गाना चाहता हूँ

लूट रहे हैं मुझको सब
मौका मिलता जिनको जब
झारखंड हूँ मैं अपने
घाव दिखाना चाहता हूँ ।

जंगलों और पर्वतों के
गीत गाना चाहता हूँ।

दर्द जो मैं भोगता हूँ
भाव वही मैं रोपता हूँ
हृदय में जो भरा हुआ
तुम्हें दिखाना चाहता हूँ

जंगलों और पर्वतों के
गीत गाना चाहता हूँ
.........नीरज कुमार नीर /
#jharkhand #jungle #geet #neeraj
#neeraj_kumar_neer 

Wednesday, 2 December 2015

मुर्दों में असहिष्णुता नहीं होती

मैं जिंदगी बांटता  हूँ
पर इसके तलबगार
मुर्दे नहीं हो सकते
लहलहाते हरियाये
हँसते खिलखिलाते पौधे
जिनमे फल की उम्मीद है
जल उन्हीं में डालूँगा
सूख चुके /सड़ चुके  पौधों में
जल व्यर्थ ही जाएगा
मैं ढूँढता हू
आनंद और ऊर्जा की खोज में रत
स्वाभिमानी
स्थायी जड़ता से ऊबे
परिवर्तन की चाह वाले
युवा सिपाही।
हजार वर्ष की परतंत्रता ने
जिनके लहू  को
कर दिया है नीला
खराब हो चुंका है जिनका जीन
उन्हें जाना होगा
पीछे नेपथ्य में
जहां अकूत शांति है
उनकी जगह वहीं हैं
मुर्दों में असहिष्णुता नहीं होती
धर्म, राष्ट्र, न्याय से हीन
ये वैसे प्रेत हैं
जो कभी कभी
धर लेते हैं कमजोर मस्तिष्क युवाओं को
............ नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer 

Saturday, 28 November 2015

धर्मनिरपेक्षता : एक लघु कथा

धर्म अफीम की तरह है, धर्म मानवता के विकास में बाधक है, धर्म शोषण का सबसे बड़ा हथियार है । सिंह साहब धाराप्रवाह सभा को संबोधित कर रहे थे। सामने बीस पच्चीस लेखकों, कवियों की जमात बैठी थी, जो उनके हर कहे की सहमति में अपना सर हिला रही थी। सिंह साहब जाने माने कवि थे एवं कई पुरस्कारों से नवाजे  जा चुके थे, अतः सभी के लिए स्पृह्य थे। सब उनकी नजर में आना चाहते थे। सिंह साहब पूरे जोशो खरोश के साथ अपना भाषण  जारी रखे हुए थे, जिसमे वे बता रहे थे कि हिन्दू धर्म कैसे बुराइयों की खान है। हमे कैसे धर्म से जुड़े सभी स्तंभों एवं मानकों का विरोध करना चाहिए ....... पूरे हौल में में उनकी आवाज गूंज रही थी, सभी सम्मान भाव से उन्हें सुन रहे थे। अचानक बोलते बोलते सिंह साहब रुक गए। सभा में उपस्थित सभी लोग सकते में आ गए कि आखिर हुआ क्या .... सिंह साहब चुप क्यों हो गए, कहीं उनकी तबीयत तो खराब नहीं हो गयी ? थोड़ी देर बाद सिंह साहब ने स्वयं ही चुप्पी थोड़ी और कहा “ अभी अजान हो रहा है , अजान के वक्त हम लोग शांति से बैठेंगे और अजान खतम हो जाने के बाद मैं अपनी बात आगे कहूँगा “ बगल के मस्जिद से अजान की आवाज सभा स्थल पर गूंज रही थी अल्लाह हू अकबर अल्लाह ........ सभा में उपस्थित सभी लोग शांत भाव से बैठे रहे ।
..... नीरज कुमार नीर..........
#धर्मनिरपेक्षता, #भारत, #बुद्धिजीवि, #अजान, #हिन्दू, #धर्म 

Saturday, 21 November 2015

लोकतन्त्र के कुछ दोहे

पढ़िये, लोकतन्त्र के कुछ दोहे :
अच्छा लगे तो लोकतन्त्र की जय बोलिए 

लोकतन्त्र में देखिये , नित्य नवीन नजीर। 
पढे लिखे सो अर्दली, अनपढ़ बने वजीर॥ 1 
... 
लोकतन्त्र की दुर्दशा, …. भारत माता रोय । 
अयोध्या में देखिए, रावण पूजित होय ॥  2 
...
लोकतंत्र को है लगा, कैसा कहिए रोग । 
झूठ, कुटिल, पाखंड को, सुंदर खूब सुयोग॥ 3    
......
भीड़, भेड़ अंतर नहीं, कुछ भी कहा न जाय। 
लोकतन्त्र में बागुला,   हंस सम मान पाय ॥ 4 
 ............ 
स्वयं भए कुपात्र जो, औरन तिलक लगाय ।
नैतिकता के सूरमा, हेरत नैन  झुकाय ॥ 5 
........ 
कर जोड़ के खड़ा रहे, लाज शर्म को खोय। 
बात करे ईमान की, डूब मरे सब कोय॥ 6 
----------------- नीरज कुमार नीर 
#neeraj_kumar_neer 

Saturday, 14 November 2015

सुशासन बाबू

 कुर्सी के फेर में क्या क्या करैं सुशासन बाबू  
कल के दुःशासन से गले मिलैं सुशासन बाबू

कैसी विडम्बना है  
राजनीति के व्यापार में
जिनके विरुद्ध खड़े हुए  
भेजा कारागार में
अब उन्हीं की आरती
उतारैं सुशासन बाबू  
कुर्सी के फेर में क्या क्या करैं सुशासन बाबू

सत और असत में अब
भेद कोई बचा नहीं है
उनके अपराधों  की  
कोई अब चर्चा नहीं है  
तम सम आचरण को
पावन कहैं सुशासन बाबू
कुर्सी के फेर में क्या क्या करैं सुशासन बाबू

सज्जन के मन खौफजदा
अपराधी आबाद है
जय कहिए कि बिहार में
आया समाजवाद है
लालटेन की रौशनी
जंगल फिरैं सुशासन बाबू
कुर्सी के फेर में क्या क्या करैं सुशासन बाबू

गली गली भुजंग दिखै
और फिरैं गड़ावत  दाँत  
मानसरोवर में बागुला
नाला हंस की पांत
गाल बजावैं खुद को
चंदन कहैं  सुशासन बाबू
कुर्सी के फेर में क्या क्या करैं सुशासन बाबू
............ नीरज कुमार नीर 

Sunday, 8 November 2015

धुआँ और बादल

एक दिन मैं बन गया धुआँ
उठने लगा ऊपर हवा में
ऊपर और ऊपर
बादलों के पास
और बादलों से कहा
मैं भी बादल हूँ
बादल हंसने लगा
कहा
मुझमें पानी है
मैं देता हूँ जीवन
तुम खोखले हो
नफरत की आग से उठे हुए
तुम फैलाओगे
अंधेरा
केवल अंधेरा
मैने आश्चर्य से भरकर
अपने प्यारे देश की ओर देखा
जहां रखी जा रही थी
विकास की बुनियाद
फैलाकर
नफरत की आग
दलितों को सवर्णों के खिलाफ
अगड़ों को पिछड़ों के खिलाफ
मुसलमानो को हिन्दुओ के खिलाफ
क्या उनके विश्वास का सपना
हो जाएगा धुआं?
......... नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer
#politics #nafrat #dalit #musalman 

Sunday, 1 November 2015

चमड़े की नाव

पकड़कर उसकी पूंछ
करते थे
जिनके पुरखे
पार
कर्म फल की वैतरणी
उसी के चमड़े की
बना के नाव
पार करना चाहते हैं उनके बच्चे
चुनाव की वैतरणी
ताकि पहुँच सकें
सत्ता, शक्ति और सुख के
पंचवर्षीय लोक में ।
... नीरज कुमार नीर

Monday, 26 October 2015

अब आँखों से ही बरसेंगे

मित्रों इस वर्ष भारत के कई हिस्सों में भयानक सूखा पड़ा है ... खरीफ की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गयी है  । भारत में किसान वैसे ही बदहाल है ऐसे में अकाल उनके लिए कोढ़ में खाज जैसी  स्थिति उत्पन्न कर देता है । बड़े शहरों में बैठकर गाँव के किसानों की स्थिति का अंदाजा लगाना जरा मुश्किल काम है पर यकीन मानिए उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय है । किसानो के इसी दर्द को मैंने अपनी इस कविता में समेटने का प्रयत्न किया है । देखिये अगर मैं उनके दर्द के कुछ हिस्से को भी अगर आप तक पहुंचा पाऊँ तो लिखना सार्थक होगा । तो प्रस्तुत है यह कविता :
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अंबर से मेघ नहीं बरसे
अब आँखों से ही बरसेंगे

शोक है
मनी नहीं खुशियाँ
गाँव में इस बार
दशहरा पर
असमय गर्भ पात हुआ है
गिरा है गर्भ
धान्य का धरा पर
कृषक के समक्ष
संकट विशाल है
पड़ा फिर से  अकाल है
खाने के एक निवाले को
रमुआ  के बच्चे तरसेंगे।
अंबर से मेघ...........

तीन साल की पुरानी धोती
चार साल की फटी साड़ी
अब एक साल और
चलेगी
पर भूख का इलाज कहाँ है
भंडार में अनाज कहाँ है
छह साल की  मुनियाँ
अपने पेट पर रख कर हाथ
मलेगी
टीवी पर चीखने वाले
बिना मुद्दे के ही गरजेंगे।
अंबर से मेघ...............

व्यवस्था बहुत  बीमार है
अकाल सरकारी त्योहार है
कमाने का खूब है
अवसर
बटेगी राहत की रेवड़ी
खा जाएँगे  नेता,
अफसर
शहर के बड़े बंगलों में
कहकहे व्हिस्की में घुलेंगे।
अंबर से मेघ,,,,,,,,,,,,,,,,

रमेशर छोड़ेगा अब गाँव
जाएगा दिल्ली, सूरत, गुड़गांव
जिंदा मांस खाने वालों से
नोचवाएगा
तब जाकर
दो जून की रोटी पाएगा ।
पीछे गाँव में बीबी, बच्चे
मनी ऑर्डर की राह  तकेंगे
पोस्ट मैन भी कमीशन लेगा
तब जाकर
चूल्हा जलेगा
बाबा बादल की आशा में
आसमान को सतत तकेंगे।

अंबर से मेघ नहीं बरसे
अब आँखों से ही बरसेंगे
..... नीरज कुमार नीर
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Wednesday, 21 October 2015

एक प्रार्थना माँ से

आप सभी मित्रों को दुर्गापूजा की हार्दिक शुभकामनाएं । प्रस्तुत है इस अवसर पर एक प्रार्थना गीत ।
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जो कुछ भी है मेरा वह
सब तुम्ही को है समर्पण
स्वीकार करो हे जननी
मेरा भक्ति भाव अर्पण

रूप, शक्ति, भौतिक काया
भ्रम, अज्ञान, असत छाया
क्षितिज पार जो विभास है
सर्व  उसमे हो विसर्जन
स्वीकार करो हे जननी
मेरा भक्ति भाव अर्पण

जले हृदय मेरे  रावण
प्रेम भाव मानस  पावन
रोम रोम में राम बसे
कैसा भी तर्जन गर्जन
स्वीकार करो हे जननी
मेरा भक्ति भाव अर्पण

ऐसे मम नाशो दुर्गति
बढ़े गति मंजिल हो मुक्ति
तेरा करूँ तुझे वापस
कटे उलझे सारे बंधन
स्वीकार करो हे जननी
मेरा भक्ति भाव अर्पण
-- नीरज कुमार नीर --
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