सितारों से सजे
बड़े बड़े होटलों में,
बड़े बड़े होटलों में,
नरम नरम गद्दियों वाली
कुर्सियां,
करीने से सजी मेजें,
मद्धिम प्रकाश,
अदब से खड़े वेटर,
खूबसूरत मेन्यू पर दर्ज,
तरह तरह के नामों वाले
व्यंजन,
खाते हुए फिर भी
स्वाद में
कुछ कमी सी रहती है.
कुछ कमी सी रहती है.
याद आता है
माँ के हाथों का खाना
माँ के हाथों का खाना
खाने के साथ
माँ परोसती थी
प्यार..
माँ परोसती थी
प्यार..
....नीरज कुमार ‘नीर’
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